श्री जवाहर स्मारक प्रथम पुष्प खंड 1 | Shri Jawhar Smark Pratham Pushpa Khand 1

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Shri Jawhar Smark Pratham Pushpa Khand 1  by पण्डित पूर्णचन्द्र - Pandit Poornachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वास्तविक शाति | प मैं आप लोगो से कहता है! आप भी `तोश्छटलसतिः ज न हैं। तीर्थ उसे कहते हैं जो दूसरो को तारे, पार उतारे । दूसरो को वही तार सकता है जो खुद तरता है। जो स्वयं न तरता हौ वहु दूसरो को व्या तारेगा! रेल यदि श्राप लोगो को अपने में बैठा कर दूसरी जगह न पहुचाये तो कया प्राप उसे रेल कहेंगे ? इसी तरह तीथं होकर भी यदि दूसरो न तारो तो तीथं कैसे कहला सकते हौ । दूसरोको तभी तार सकते हो जव स्वय तिरो । एक भाई का मुह बासता था | मैंने पूछा, वया बीडी पीते हो ? उसने उत्तर दिया, जी हा पीता हूँ । मेरे पीछे यह दुव्यंसन लग गया है । मैंने कहा कि भगवान महावीर के श्रावक होकर श्रापमे यह कमजोरी कंसी ? विना कष्ट सहन किये कोई कार्य नहीं होता । कष्ट सहन करके भी यदि इस दुव्य॑सन को तिलाज्जली दे सकोतो इसमे तुम्हारा और हमारा दोनो का कल्याण है श्रापके तीर्थकर के माता पिता जगत्‌ के कल्याण के लिए अन्नञजल त्याग देते हैं श्र भाप बीडी जेसी तुच्छ वस्तु को भी न छोड सके, यह मुझ पर कितना भार है ? मैं इस विषय मे क्या कहु? यदि लोग बीडी पीना छोड दें तो मैं कह सकत। हू कि राजकोट का सघ वीडी नहीं पीता है । वीडी पीने वाले कहते हैं कि वीड़ी पीने से दरत साफ आता है । पेट मे किसी प्रकार कौ गडबड नहीं रहती । पहले से लोग पीते आये हैं अत. हम भी पीते हैं । यदि यह कथन ठीक है तो मैं पुछत्ता हूँ कि बहिनें बीड़ी क्यो नहीं पीती । उन से यदि वीडी पीने के लिए कहा जाय तो वे यही उत्तर देगी कि हम क्यो पी्यें, हमारी बलाय पीये । स्त्रिया तो यो कहती हैं श्र श्राप लोग पगडी बाघने चाले




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