आधुनिक गद्य संग्रह | Adhunik Gadya Sangrah

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Adhunik Gadya Sangrah by प्रेमनारायण शुक्ल - Premnarayan Sukla

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

प्रेमनारायण शुक्ल - Prem Narayan Shukla

डॉ प्रेम नारायण शुक्ल का जन्म कानपुर जिले की घाटमपुर तहसील के अंतर्गत ओरिया ग्राम में २ अगस्त, सन १९१४ को हुआ था। पांच वर्ष की आयु में माता का निधन हो गया था, पिता जी श्री नन्द किशोर शुक्ल, वैद्य थे। आपकी सम्पूर्ण शिक्षा -दीक्षा कानपुर में ही हुई। सन  १९४१ में आगरा विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ थाl इसी वर्ष अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की 'साहित्यरत्न' परीक्षा में भी आपको प्रथम श्रेणी में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त हुआ। श्री गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा चलाये गए  अखबार 'प्रताप' से  शुक्लजी  ने अपने जीवन की शुरुआत  एक लेखक  के रूप में की l

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका । ९. (१८०९ ई०) विशेषरूप से उल्लेखनीय है । इनमें भी, चन्द्रावली का हिन्दी गद्य के विकास में एक विशिष्ट स्थान है । यह “चन्द्रावली' नासि- केतोपाख्यान' का अनुवाद है, जिसे उन्होने फोर्ट विलियम कालेज के अध्यक्ष गिल फ्राइस्ट महोदय की प्रेरणा से किया था । इनकी भाषा में न तो इंशा बल्‍ला खाँ की भाषा का फारसी-अरवी रूप है और न लल्लूलाल जी की भाषा का पंडिताऊपन । आरा जिले के निवासी होने के कारण उनकी भाषा पर्‌ बिहारी के साथ-साथ वंगला माषा का भी प्रमाव देखने को मिलता है । इसके साथ ही कुछ पूर्वी बोलियों के शब्दों के प्रयोग से भी ये नहीं बच सके हैं । फिर भी उनकी भाषा परि- माजित्त गद्य की विशेषत्ताभों को अधिक आत्मसात्‌ कर सकीदहै। ईसाई धर्मे-प्रचारकों का योगदान हिन्दी-प्रदेश में ईसाई घर्मे-प्रचारकों का प्रवेश अंग्रेजी शासन के स्थापित होने से वहुत पूर्व हो चुका था । सन्‌ १८१३ में “बिल फोसें एक्ट के पारित होने से ईसाइयों को अपने धमे का प्रचार करने की अनुमति मिल गयी । तब से ईसाई धर्मप्रचारकों ने भारत के प्रमुख नगरों को अपने कार्य का केन्द्र वनाया और इनका प्रचार पूर्ण भारत में प्रारम्भ हुआ । इन धघर्मप्रचारकों को जनसाधघारण की वोली से ही अपने धर्म के तत्त्वों की व्याख्या करनी पड़ती थी जिससे उसके प्रचार एवं प्रसार को विस्तार मिल सके । इस उद्देश्य की पूरति के लिये उन्होंने हिन्दी-गद्य की उस परम्परा को ग्रहण किया जो रामदास निरंजनी, सदासुखलाल, लल्छू खाल हारा व्यवहृत होती हुई विकसित हुई थी । धर्म-प्रचार के लिए ईसाइयों ने 'वाइविल' का अनुवाद कराया । श८०९ईं० में हेनरी मार्टिन ने वाइविल का हिन्दी और उर्दू दोनो भाषाओं में अनुवाद किया । इस अनुवाद का ऐलिहासिक महत्त्व है ।




User Reviews

  • Ranjana Dixit

    at 2020-09-09 15:33:19
    Rated : 7 out of 10 stars.
    vibhinn sahitykaron ke nibandhon ka sankalan.
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