भवभूमि की कृतियों का नाट्यशास्त्रीय विवेचन | Bhavbhuti Ki Kritiyan Ka Natayasastraya Vivechan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Bhavbhuti Ki Kritiyan Ka Natayasastraya Vivechan by अशोक - Ashok

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अशोक कुमार दुबे - Ashok Kumar Dube

Add Infomation AboutAshok Kumar Dube

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
परवर्ती प्रथो में उद्धृत ये अंश किन्हीं नाट्य-विषयक स्वतंत्र ग्रन्थों से सम्बद्ध हैं या नहीं, इस सम्बन्ध में प्रामाणिक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है । परन्तु इतना अवश्य है कि बहुत प्राचीन काल से आचार्य भरत के पूर्व ही नाट्य-विद्या पर स्वतंत्र ग्रन्थों का प्रणयन होना आरम्भ हो गया था | आचार्य भरत ओर उनका नाद्यशास्त्र नाट्यशास्रीय ग्रथ के निर्माण की मूर्तं परम्परा का प्रवर्तन आचार्य भरत के 'नाट्यशास्त्र' से हुआ । उनके विषय में प्रायः सभी विद्वानों का अभिमत है कि वे महान्‌ प्रतिभाशाली तथा युग प्रवर्तक महापुरुष थे । उनका “नाट्यशास्त्र' एक विश्वकोशात्मक रचना है, जिसमे अनेक शिल्पो, नानाविध कलां और विभिन्‍न विद्याओं का दिग्दर्शन होता है । आचार्य भरत का व्यक्तित्व संस्कृत साहित्य में सर्वत्र व्याप्त है । नाट्यशास्त्र के निर्माता के रूप में उनका नाम विश्वसाहित्य मँ अमर है । उनका यह महान्‌ ग्रन्थ, चायो वेदों का दोहन कर पञ्चम वेद के रूपमे विश्रुत है ओर अपने निर्माता के यश एवं गौरव को सुरक्षित बनाये हुए है। भरत किसी सम्प्रदाय, शाखा या चरण का नाम न होकर व्यक्ति विशेष का नाम था । लि उनके बाद उनकी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले उनके सौ पुत्रों या शिष्यों द्वारा उन्हीं के नाम से उसका प्रचलन हुआ । व्यक्ति विशेष के लिए भरत शब्द का प्रयोग अनेक परवर्ती ग्रन्थों में देखने को मिलता है । इस प्रकार के प्रथो मैं मुख्य रूप से महाकवि कालिदास के विक्रपोर्वशीयम्‌ ओर नाटककार भवभूति के ‹उत्तररामचरितम्‌ का नाम उल्लेखनीय हे । कालिदास ने विक्रमोर्वशीयम्‌ के एक संदर्भ मेँ नेपथ्य से देवदूत द्वारा कहलाया हेः चित्रलेखा,




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now