श्रीमद भागवत गीता और धम्मपद के नैतिक उपदेशों का तुलनात्मक और समालोचनात्मक अध्ययन | Srimad Bhagwatgeeta Aur Dhammpad Ke Naitik Updeshon ka tulnatmak aur Samalochnatmak Adhyayn

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Srimad Bhagwatgeeta Aur Dhammpad Ke Naitik Updeshon ka tulnatmak aur Samalochnatmak Adhyayn  by प्रवीण कुमार शुक्ल - Praveen Kumar Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भगवद्गीता की रचना उस महान आन्दोलन के बाद की है, जिसका प्रतिनिधित्व प्रारम्भिक उपनिषदे करती हैं । महाभारत का एक भाग होने से कभी-कभी यह शंका की जाती है कि गीता को बाद मे चलकर महाभारत मे मिला दिया गया है । तैलग भी विशेषकर इसी निर्णय के साथ सहमत हेते हुए कहते है कि ' भगवद्‌ गीता एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है, जिसे महाभारत के ग्रन्थकार ने अपना प्रयोजन सिद्ध करने के लिए महाभारत मे प्रविष्ट करा लिया है ।* * परन्तु महाभारत मे कई स्थानो पर भगवदगीता का उल्लेख मिलता है, जो यही सकेत करता है कि महाभारत के निर्माणकाल से ही गीता को उसका एक वास्तविक भाग माना जाता रहा है ।* *दोनो को एक मान लेने पर भी गीता के रचनाकाल का ठीक-ठीक निर्णय नही हो पाता हे । तैलंग ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी को गीता का रचनाकाल मानते है । आर० जी० भण्डारकर ईसा पूर्व चौथी शताब्दी को गीता का रचनाकाल मानते है, तथा गार्वे गीता के प्रारम्भिक आकार को ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व और वर्तमान गीता को ईसा से २०० वर्ष पश्चात्‌ मानते है । विभिन्न मतभेदो को ध्यानगत रखते हए इसकी प्राचीन वाक्य रचना ओर आन्तरिक निर्देशो से हम यह परिणाम निकल सकते है कि इसका काल ईसवी पूर्व पॉचवी शताब्दी कहा जा सकता है । गीता की रचना का श्रेय व्यास को दिया जाता है, जो महाभारत के पौराणिक सकलनकर्ता है । (ख) श्रीमद्भगवद्गीता की सामाजिक पृष्ठभूमि गीता का स्त्रीलिङ्ग शब्द भी इस गीता के आधार पर ही प्रचलित हुआ है । वैसे गीता शब्द सस्कृत मे प्राय. नपुसक लिद्ध मे ही प्रयुक्त है । गीतम्‌ यही निर्देश सामान्यतः प्राप्त होता है । फिर यही गीता शब्द स्त्रीलिद्ध क्यो आया 2 इसका कारण है, इसका पूरा नाम “भगवदगीतोपनिषद है । गीता सब उपनिषदो का सार है । सार होने का कारण इसका भी उपनिषद्‌ नाम से ही व्यवहार प्रवृत्त हुआ । उपनिषद्‌ शब्द स्त्रीलिङ्ग है । इसका विशेषण होने से गीत शब्द भी स््रीलिद्ध बना ओर गानकर्ता भगवान्‌ का नाम साथ जोड़कर भगवद्गीतोपनिषद्‌ यह पूरा नाम हुआ भगवद्गीता की पुस्तको मे अध्याय समाप्ति मे ऐसा ही लेख देखने मे आता है-- “इतिभगवदगीतास्‌पनिषत्सुव्रह्म विद्यायाम्‌ योग शास्त्र इत्यादि । बहुत से उपनिषदो कासार भगवान्‌ ने लिया था इसलिए भगवद्गीता सुउपनिषत्सु' यह बहुवचन निर्देश प्रचलित हुआ । किन्तु व्यवहार मे धीरे-धीरे वे 'विशेषण विशेष्य निकल गए ओर भगवद्गीता वा गीता शब्द ये सक्षिप्त शब्द ही प्रचलित रह गए । यही कारण था कि यहो स््रीलिद गीता शब्द के व्यवहार का था ! किन्तु आगे इस बात पर ध्यान न देकर उपदेशो मे स्त्रीलिद्ध गीता शब्द का ही प्रवाह चल पड़ा । स्वयं महाभारत मे ओर अन्य पुराणो मे यह स्त्रीलिङ्ध गीता शब्द भिन्न-भिन्न उपदेशो मे प्रयुक्त हुआ है । पिगल, शपाक गीता, विणख्यु गीता, हारीत गीता, वृत्र गीता, अवधूत गीता, गणेश गीता, पाण्डव गीता, शिव गीता, देवी गीता आदि बहुत सी गीताएँ महाभारत एवं पुराणो मे प्राप्त होती है । महाभारत के अश्वमेघ पर्व मेँ यह प्रसंग आता है कि युद्ध समाप्ति ओर राज्याभिषेक के अनन्तर द्वारका से पुनः हस्तिनापुर आए हुए भगवान्‌ श्रीकृष्ण से एकान्त में एक दिन अर्जुन ने कहा कि “युद्ध के आरम्भ में जो आप ने उपदेश दिया था वह आगे युद्ध की हड़बड़ी मे मुझे विस्मृत हो गया है । अब कृपा कर वह उपदेश मुञ्चे फिर सुना दीजिए । इस पर भगवान्‌ ने खेद प्रगट करते हुए कहा कि तुमने बड़ी असावधानी की जो उस उपदेश को भुला दिया उस समय योग युक्त होकर 9




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