वेदांत दर्शन पूर्वार्द्ध | Vedant Darshan Purvarddh

Vedant Darshan Purvarddh by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) जाट थोर पादरी साहव का मुवाहिसा 'आादि इसाई मत फी समा लोचना, मूर्ति-शूजा विचारादि, पौराणिक मत कौ भ्रालोचना इसी प्रकार सैनी श्रादि श्ववैदिक मतो को द्यान.वीन मेसो सवासो पष्ट लिव शरीर ममास शरोर भाग फो छोडकर सभी दशनों पर छापका साण्य है। गोइ पादोय कारिकाओओं पर भी आपका भाष्य है। मतुस्पति घर गीता पर भी ापके सुन्दर भाष्य हं | व्याख्यान देना, शास्राथ करना, रात-दिन रेखा में घूसना, प्रेफ़ोस के कट शुरुकुलों को चलाना श्रौर लीडरी फे लोलुप शाय्यसमाजियों के प्रह्रों को बचाना ; इतनी कठिनाइयों म॑ंभी युक्तण ऐसा ठोस साहित्य तेयार कर देना 'ापकी प्रतिभा का ही कोशल था। शाल्नार्थों में तो पका नाम ही विपन्तियां को निस्तेज कर देता था | सम्भलसराय तरीन के शास््राथ में परिडत भीमसेन रादि वद-ड पौराणिक परिडत ` मोजूद थे घोर समाज की श्रोर चेते खामीजी ; परन्तु आपकी वाणी का यह प्रभाव था कि प्रतिपक्ती भो सराहना करते थे शरीर पौराणिको को वद करारी ठिफ्रीट दी कि शास्राथ कराने- वाले खद्‌ झ्ाय्यसमाजी वन गये श्र जो लोग नमस्ते के नाम पर गालियाँ दिया करते थे श्राज बड़े प्रेम से नमस्ते करते हैं। अजमेर के जैनियों से शाला हुआ, जिसमें आपने नास्तिकता के धुरें उड़ा दिये और जेन न्याय के प्रकाएड पंडित 'आपकी युक्तियों के सामने दाँतों तले उंगली दवाते थे। श्राय समाजी पंडितों से भी आपका चृत्तों में जीव विपय पर घोर मतभेद था | याप वृत्तो में प्राकृतिक प्रबन्धीय क्रिया मानते थे, खतंत्र जेवी क्रिया नहीं । श्रापके शाख्राथ उस विपय में आये विद्वानों से हुए और वह छपे हुए भी हैं, जिनको पढ़ने से आपके पक्ष को ही बलवत्ता प्रकट होती है। आप 'अकाल भृ्यु फो नहीं मानते थे.




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