भूगोलसार | Bhugol Saar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ भूगोलसार ॥ ९९. -बलय. चार निषुवत्‌ , ठीक भिलजाते क ॥ आगे सायन.ठवभ तक १.२ अंश विषृवत्‌ रेखा से उत्तर दिशा के !सर्य जाता. ह, तिख प्रौ, सायन निधन ` तक २० अंश उत्तर कौ च्यर्‌ सयं जाता के; किर सायन ककं तक २४ अंश उत्तर ' की रिश में (वह पहुंचता हो, इस का. ' उत्तर परम. क्रांति: कहते: हैं. ॥ , :सददलाघेव में जा भुज कद्दा है सा यद्ध मज दै; इससे दूसरे को उलय मुज बोलते शँ; सायन सिंह तक परम कांति ४ प॑र घट जात हें, अनतर सायन वंन्या तक ९२ अंश परम जांति में चरते हें, तिसपौछे सायन तुल तक २४ अंश परम क्रांति न्यून 'दाजाते |, अब फिर विषुबत्‌ से क्रांत्तिवलय मिलजाता = यद द्वूसार्‌ भुज ज्ञा ॥ अगे सायन चिक तक ९२ अंश बिषुवत्‌ रेखा से दक्षिण दिशा सर्य जाता ड, वनि सायन घन तक ९० अंश दक्षिण में सूय चलता है, पीछे सायन मकर तक २४ अंश दक्षिण दिशा को वच् गमन करता हैं, इस के दक्षिण परम करति कते दं; यदह तीसरा भुज कुआ॥ तिस पीछे सायन कभ तकं अंश परम च्ांति में घट जाते हैं; तिसके अनंतर सायन मौन तक ९.२ अंश परम क्रांति में न्यन हेते ॥ फिर सायन मेष तक २४ अंश घटनाते हैं; उस समय फिर विषुवत्‌ से क्रांतिबयल भिलजाता हे, यदद चधा भज हुआ ॥ इसलिये सायन मेष आर सायन तुल के ऊपर कांति बलय म जिस स्थान पर सुयं चता देः उसी सान का काति पात क्ते इं; जिस. समय .में उत्तर क्रांति एक सें लगा के परमक्रांति तक जितनी बढती जाती हे, उस समय में उत्तर दिशा के रददनेवालों के उसी त्रम से दिनि बढता जाता है, विषुवत्‌ से दक्षिण दिशा के ररहनेवा्तां के रावि अधिक हाती जाती दं॥ जिस काल में उत्तर परमक्नांति घटती जाती रे




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