प्राचीन भारतीय विचार और विभूतियाँ | Praachin Bhaartiy Vichaar Aur Vibhutiyan

Praachin Bhaartiy Vichaar Aur Vibhutiyan by डॉ. राधाकुमुद मुकर्जी - Dr. Radhakumud Mukarji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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याज्ञचल्क्य भारत के सूगोल को देखते हुए उसका इतिहास जैंसा होना चाहिए था, उससे यह॒सबंधा भिन्न है । उत्तर के पव॑त-प्रहरियों और दक्षिण की सामर-लहरि्ो ने भारत को नाको संसार से स्पष्टतः एरथक्‌ रखकर उसे एक निश्चित भौगोलिक इकाई का रूप दिया है । किन्तु फिर भी उसका पाथिच प्रथक्त्व उसके इतिहास पर विदेशी श्रभावों को नहीं रोक पाया है। वास्तव में मानव-इतिहास की झ्ायः सभी प्रमुख विचार-धाराओं ने भारत को भी स्पर्श किया है श्रौर उसकी संस्कृति श्रथवा सभ्यता पर कुछ ऐसे अमिट चिह्न छोड़े हैं जिनके कारण एक श्रति मिश्रित एय संवलित व्यवस्था बनकर रह गई है। फारसी, यूनानी, रोमन, सीधि- यन, यूह-ची, हूण, सुस्लिम और यूरोपीय सभी विचार-धाराओं ने भार- तीय सभ्यता नामक इस विचित्र मिश्रण के निर्माण में विभिन्‍न तत्त्व प्रदान किये हैं; किन्तु इस सभ्यता का शिलाधार इण्डो-श्रायन ही है श्नौर यह्‌ श्राधार समस्त परिवतनों के दौरान में श्रौर इस सभ्यता की विभिन्‍न अवस्थाओं में बना रहा है । भारतीय सभ्यता की नीव लगमग २०००-१००० ई ० पू० में पढ़ी निस दौरान में यहाँ की भरत नामक एक जाति के नास पर भारतवर्षं कहलाने वाले इस महाद्वीप को बसाने तथा सभ्य बनाने का काम आयौ द्वारा आरम्भ श्रौर प्रायः समाप्त किया जा चुका था । भारतीय सभ्यता के इस प्राथमिक और निर्माणकालीन युग का प्रतीक भारतीय झायों की विभिन्‍न संस्थाएँ तथा उनका साहित्य है श्रौर इस युग को दूसरे युर्गों १७ :




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