अंतर की ओर | Antar Ki Or
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
220
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)से
मौनं
सर्वार्धिसाघनम्
क
मौन समस्त भर्यों की सिद्धि करने वाला है । मौन उस श्रवस्था को
कहते हँ जो वाक्य मौर विचार से परे धुन्य ध्यानावस्था हो । जीवन मे मोन
का बडा भारी महत्व है । मौन घारण करने से मस्तिप्क की शवित बढती है
ओर उस शक्ति को वल मिलता है । इसलिये कहा जाता है कि मौन मे अनत
शवित निहित है । किसी पाइचात्य विद्वान ने कहा है --
*९50९800 15 छुणेठे 90 झटप८९ 15 छ०0८0,7*
अर्थात् वोलना सोना है किन्तु मौन सुवणेनिमित सुन्दर भभुषण है।
अधिक वोलने से स्वास्थ्यकफो हानि पहुचती है मौर उसमे इतना समय
व्यथं चला जाता है कि मनुष्य अपने उद्देश्य की सिद्धि मे पूरा समय नहीं दे
पाता । इसके विपरीत कम वोलने वाले और अधिक से अधिक मौन रहने
वाले व्यक्ति की कार्येक्षमता वढ जाती है मोर वह अपने समय का पुणे रूप
से सदुपयोग कर सकता है । कवीर ने कहा है *--
घाद विवादे विष घना, वोते वहूत उपाघ ।
मौन गहै सवकी सहै, सुनभिरं नाम अगाध ।!
वाद-विवाद करने से मनुष्य-मनुप्य मे कल्डु हो जात्ता है, कटुता वदती
है भौर अनेक उपाधिया परेशान करती हैं । किन्तु सबकी सहता हुआ मनुष्य
अगर मोन धारण कर ले तो वह निर्षिचित होकर भगवदुभजन कर सकता है,
भगवान का स्मरण कर सकता है । रवीन्द्रनाथ टैगौर की एक कविता में
अत्यन्त सुन्दर भाव भरा हुआ है । उसमे पूछा है . --
“हे सागर ' तेरी भाषा क्या है ?”
“अनन्त प्रद्न की मापा ।”
हे आकाश ! तेरे उत्तर की भाषा कया है ?”'
“अनत मौन की भाषा ।”'
कितने सुन्दर भाव हैं । वास्तव में मोन में शब्दों की अपेक्षा अधिक
चाकू शक्ति होती है । अनत मागर् ओर सीम आका मौन रहकर भी जीवन
के महान सत्य का दिग्दर्शन करा देते हैं ।
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