परिग्रह परिमाण व्रत | Prigrah Prinam Varat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(4
७ विघय-प्रवे्
को छः मार्गों में विमक्त कर दिया हैं। उनका कथन दै, किं जितना
मौ वाद्य पलिह है, अर्थात् दृरयमान नगत के निन पदार्थो से
झात्मा को ममत्व होता हैं, उन सब पदार्थों को छः श्रेणी मे नाटां
जा सकता है । वे छः श्रेयी इस प्रकार दें घन-शघान्य क्षेत्र
चस्तु द्वियद श्रौर 'वोपद । ससार का कोई मी पदा्थ-निससे
मनुष्य को ममत्व होता है--इन छः श्रेणी से बाहर नहीं रह
लाता | इन छः श्री मे प्राय समस्त पदार्थं श्रा नति | यदि
चाही, तो इन छः भेदों को भी कनक श्रोर कामिनी इन दो
ही मेदों में काया ना सकता हैं नड़ श्रौर चेतन्प पदार्थ में से
किन्दीं उन दो पदार्थ को, निनके प्रति प्र से श्राविक ममत्व दोता
है पकड़ केने से दूसरे समस्त पदार्थ भी उनके. झन्तगंत झा
जायेंगे | ' इसके लिए विचार करने पर मात्दम द्ोगा, कि. मनुष्यों
को) वाह्य पदार्थौ मे सव से श्रधिक ममत्व कनक श्रोर कामिनी से
होता है । कनक श्रथात् मोना-के श्न्तगत् समस्त नद् पदाथ श्रा
नाते हे, शरोर कामिनी--्ीत् खौ के श्रन्तरगत स्तमस्त चैतन्य `
पदार्थ श्रा नति टै । क्योकि, बाह्य पदार्थो मे, मनुष्य को इन दोनों
ते श्रधिक किसी पदार्थ से ममत्व नहीं होता । उत्तराष्पयन सूत्र
1)
` #नद अकार ॐ वाह्य परिग्रह ( जिसका वणन खाने है ) में जाये
हुए हिरण खव ओर् ऊुप्प का समावेदा सो घन में हो हो जाता हैं ।
में गौतम स्वामी को द्रप्टेश देते हुए सगवःन मह़ीर ने भी
` कष पि म =
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