गीता - विज्ञान | गीता विज्ञान

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गीता विज्ञान by रामगोपाल मोहता - Ramgopal Mohta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चिज्ञान ष् रहना चाहिये; किन्तु सब के-कर्मों करा फल सब के: लिए होना : चाहिये; जिसमें स्वयं कर्म करने चाला भी शामिल है अर्थात्‌ प्रत्येक कर्म:करने वाले को उसका फल.छपने-झपने कार्यक्षेत्र सें छानेवाले. दूसरे घ्यक्तियों को बांट कर स्वय भोराना चाहिए---यह कर्म-फल-त्याग है।. ः किसी भी कोस में मनुष्य की श्रदृत्ति कोई न कोई उद्देश्य झंथवा कामना लेकर ही होती है । निरथैक चेष्टा कोई नहीं कर्ता परन्तु दूसरों से प्रथक्‌ ्पने व्यक्तिगत स्वार्थ-सिंद्धि की कामनां 'ही 'से जो +कार्य किये जाते हैं, उनमें दूसरों के स्वार्थों की अवहदेलना करने और उन्हें कुचलने. का. भाव रहता है; यह वहुत बढ़े . छानथं का हेतु होता है. इसी से समाज 'और जगत्‌ में कलह होकर सब- को डुश्ख दोता है. 1 भगवान्‌ इस प्रथक व्यक्तिगत स्वार्थ-सिद्धि की कामना. का त्याग: /कंरवा कर सबके हित की कामना से अपने-अपने क्तेव्यों का पोलन करने का सब को उपदेश देते हैं ।-यददी गीता का निष्कास कर्म हैं। . यदद है गीता को त्याग और बैराग्य ! सारांश यह .कि गीता किसी को घर-गृददस्थी छोड़कर वन में जाने अथवा भीख 'मांगकर खाने और संसार पर वोमक होने का. उपदेश नददीं देती । चल्कि ऐसे संन्यास का साफ़ साफ़ सिपेघ करती है। गीता सनुष्य को महाकर्ता श्र साथ दी सोथ मंहदा-अंकर्ता भी वनाती है, और महानत्याग“के साथ ही साथ अखिल चिंश्व का स्वामित्व भीं देती है। में ठुम को ऐसा दी 'साघु बनाना चाहता हूँ। पाठ है बुद्धि-योग _ गोपाल--झाप की व्याख्या .के झचुसार त्याग आर वराग्य का 'स्वरूपःही और का और दोरया;-- परन्चु झाप जो. सब, के लिए. अपने कर्तेव्य-कर्म करने को कददते हैं,; वे कतंव्य-कर्म , यज्ञादिक्‌ , घार्मिक-कर्म-




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