गीता - विज्ञान | गीता विज्ञान
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.99 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चिज्ञान ष्
रहना चाहिये; किन्तु सब के-कर्मों करा फल सब के: लिए होना : चाहिये;
जिसमें स्वयं कर्म करने चाला भी शामिल है अर्थात् प्रत्येक कर्म:करने
वाले को उसका फल.छपने-झपने कार्यक्षेत्र सें छानेवाले. दूसरे घ्यक्तियों
को बांट कर स्वय भोराना चाहिए---यह कर्म-फल-त्याग है।. ः
किसी भी कोस में मनुष्य की श्रदृत्ति कोई न कोई उद्देश्य झंथवा
कामना लेकर ही होती है । निरथैक चेष्टा कोई नहीं कर्ता परन्तु दूसरों
से प्रथक् ्पने व्यक्तिगत स्वार्थ-सिंद्धि की कामनां 'ही 'से जो +कार्य
किये जाते हैं, उनमें दूसरों के स्वार्थों की अवहदेलना करने और उन्हें
कुचलने. का. भाव रहता है; यह वहुत बढ़े . छानथं का हेतु होता है.
इसी से समाज 'और जगत् में कलह होकर सब- को डुश्ख दोता है. 1
भगवान् इस प्रथक व्यक्तिगत स्वार्थ-सिद्धि की कामना. का त्याग: /कंरवा
कर सबके हित की कामना से अपने-अपने क्तेव्यों का पोलन करने का
सब को उपदेश देते हैं ।-यददी गीता का निष्कास कर्म हैं। .
यदद है गीता को त्याग और बैराग्य ! सारांश यह .कि गीता
किसी को घर-गृददस्थी छोड़कर वन में जाने अथवा भीख 'मांगकर
खाने और संसार पर वोमक होने का. उपदेश नददीं देती । चल्कि ऐसे
संन्यास का साफ़ साफ़ सिपेघ करती है। गीता सनुष्य को महाकर्ता
श्र साथ दी सोथ मंहदा-अंकर्ता भी वनाती है, और महानत्याग“के साथ
ही साथ अखिल चिंश्व का स्वामित्व भीं देती है। में ठुम को ऐसा दी
'साघु बनाना चाहता हूँ।
पाठ है
बुद्धि-योग _
गोपाल--झाप की व्याख्या .के झचुसार त्याग आर वराग्य का
'स्वरूपःही और का और दोरया;-- परन्चु झाप जो. सब, के लिए. अपने
कर्तेव्य-कर्म करने को कददते हैं,; वे कतंव्य-कर्म , यज्ञादिक् , घार्मिक-कर्म-
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