श्यामनारायण पाण्डेय | Shyamnarayan Pandey

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Shyamnarayan Pandey by कृष्ण चन्द्र - Krishn Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्यामनारायण पाण्डेय के इस स्थिति-विश्लेषण से उनकी मनोदशा को समझा जा सकता है। यह मनोदशा उनकी ही नहीं थी, उस स्मय के असंख्य लोगों की थी। यह सच्चाई है कि गाँधीजी के नेतृत्व में लोगों की जितनी गहरी आस्था थी, उनके कुछ निर्णयों से लोग असहमत और क्षुब्ध भी रहते थे। जवाहरलाल नेहरू भी उनकी बहुत सारी बातों से असहमत रहते थे, किन्तु गाँधी जी के नेतृत्व को भी अपरिहार्य मानते थे। गाँधी जी के अनेक निर्णयों से यदा-कदा हिन्दूमानस क्षुब्ध भी होता रहता था। कभी-कभी राष्ट्रीय आन्दोलन जव अपने पूरे वेग में होता था, गाँधी जी सत्य, अहिंसा के अस्त्र से उसे बीच में ही रोक देते थे। “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तौं हमारा जैसा क्रौमी तराना लिखनेवाले ड. इकबाल आदि ने जब पाकिस्तानं की माँग उठाई तो सारा हिन्दू समाज विश्षुब्ध हो उठा। उस समय की परिस्थितियों का भी विश्लेषण करते हुए श्यामनारायण पाण्डेय ने लिखा है- गौतम बुद्ध ओर महावीर के पदचिष्ो पर चलनेवाले हिन्दू एक दूसरे को चकित आँखों से देख ही रहे थे, तब तक पाकिस्तान की नींव निहत्थों की निर्मम हत्या, बलात्‌ धर्म-परिवर्तन, असहाय अबलाओं कं साथ बलात्कार तथा जलते हुए नगरों और गाँवों की भयंकर लपटों के सहारे उठने लगी । गर्ग, गौतम, कणाद और कपिल की जन्म धरती रक्त से नहाने लगी, बड़े-बड़े लोकरक्षक तलवार के घाट उतार दिये गये, हिन्दू-मुस्लिम का नारा बुलन्द करनेवाले कोररों में घुस गये । हिन्दुओं की सहनशक्ति जब क्षीण होने लगती, आकाश में जब वद्वर्षी लाल-लाल बादल र्मँडराने लगते, भयंकर तूफ़ान उठनेवाला होता तो गाँधीजी अनशन पर बैठ जाते, मरने की धमकी देने लगते | हिन्दुओं के कण्ठ में जय बजरंगबली का हुंकार गड़गड़ाकर रह जाता और उनका सारा जोश आँखों से बहने लगता । यह था धर्मभीरु हिन्दू जाति पर महात्मा शब्द का प्रभाव । यवन बर्बरों और हिंसक गोरों के कराल जबड़ों के बीच पिसी जा रही थी हिन्दू जाति, उनकी विद्या ओर संस्कृति ।” (आधुनिक कवि-17, भूमिका, पु. 7) इस विश्लेषण से जहाँ यह स्पष्ट होता है कि महात्मा गाँधी के कुछ निर्ण्यों से हिन्दू जनता इसलिए असन्तुष्ट हो जाती थी, क्योंकि उनसे उसका आक्रोश दब जाता था, इसी के साथ यह भी स्पष्ट हो जाता है कि महात्मा गाँधी के अनेक निर्णय मुस्लिम लीग और मुसलमानों के पक्ष में होते थे । यह आरोप राष्ट्रवादी हिन्दुओं का रहा है और इसी समञ्च के चलते हिन्दूवादी संगठन फूलते-फलते रहे हैं और इसी की चरम परिणति महात्मा गाँधी की नृशंस हत्या में दिखाई पड़ी । श्यामनारायण पाण्डेय ने “यवन बर्वरों' और “हिंसक गोरों' को एक साथ “हिन्दू जाति' के खिलाफ़ स्वीकार करके यह भी रेखांकित किया है कि उनकी चिन्ता के केन्द्र में केवल हिन्दू समय और चेतना ८ 15




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