कृषक जीवन सम्बन्धी ब्रजभाषा - शब्दावली भाग 1 | Krishak Jivan Sambandhi Brajbhasha-shabdawali Bhag 1

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Krishak Jivan Sambandhi Brajbhasha-shabdawali Bhag 1  by अम्बाप्रसाद सुमन - Ambaprasad Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ग्लौसरी फार दी नार्थ-वैरट पौर्विसेज़ एण्ड अवघ ? नाम से सन्‌ १८७६ ईं० मे प्रकाशित दुध्रा था | जनपदौय शब्द-संग्रह पर तीसरी पुस्तक सर जाजंए० ग्रियर्सनक्त बिहार पेज़ेंट लाइफ *' है। इन पंक्तियों के लेखक ने सर प्रियसंन की इसी पुस्तक की झादर्श रूप में श्रपने कार्य के लिए, ग्रहण किया है । शब्द-संग्रहह के. लेत्र में प्र च्रार० एल० टनैर की नैपाली डिक्शनरी भी बहुत महत्वपूर्ण है । लममग सात वर्ष हुए, श्ाचार्यप्रवर डा० धीरेन्द्र वर्मा के निर्देशन में डा० हरिंहर- प्रसाद गुप्त ने एक शोध-प्रबंध लिखा था, जिसका विषय था--“'दझ्ाजमगढ़ जिले की फूलपुर तहसील के आधार पर भारतीय ामोद्योगों से सम्बन्धित शब्दावली का अध्ययन ।” इस विपय पर उक्त लेखक को प्रयाग विश्वविद्यालय से डी० फिलू० की उपाधि मी प्राप्त हो चुकी है | मैं श्रपने ज्ञान एवं साहित्य-परिचय के श्राधार पर यह कह सकता हूँ कि. “कपक-जीवन- सम्बन्धी ब्रजमाप्रा-शन्दावली नामक यह पुस्तक प्रबन्घ-विषय के दृष्टिकोण से छुठी, शिल्प में तीसरी श्र शैली की दृष्टि से प्रथम है । इस प्रबन्ध से पूर्व लिखी हुई पुस्तकों में सर जाज॑ ए.० प्रियर्सन की पुस्तक का शिल्प-विधान प्रथम ग्रौर डा० हरिहरप्रसाद गुप्त की पुस्तक का द्वितीय माना जा सकता है | किन्तु शब्द-प्रमाणों के उद्धरणों की दृष्टि से तो श्रलीगढ़-क्षेत्र की बोली के श्राघार पर लिखा हुआ यह शब्द-संग्रहात्मक प्रबन्ध नितान्त मौलिक ही माना. जायगा, जिसमें बहुत-से शब्दों के मूल श्रौर विकास को बताने के लिए लगभग सभी प्रामाणिक कोशों का श्वलोकन किया गया है और वेद्कि काले से लेकर लौकिक संस्कृत तक तथा पाली माषा से लेकर हिन्दी तक के कुछ- प्रमुख-प्रमुख ग्रन्थों से विषय-सम्बद्ध प्रमाण भी दिये गये है| व्युत्पत्तियों के द्वारा हमें शब्दों के श्र्थय्‌ पूणं जीवन श्र उनकी वंशपरंपरा से परिचय प्रात हो जाता है | व्युत्पत्तियों की छान-बीन से ही हम यूले हुए ऐतिहासिक तथ्यों तथा प्रवादों तक पहुँपचते हैं और हमें यह भी ज्ञात हो जाता है किं ्रसुक शब्द की प्राचीनता और विकास-क्रम कया है ! अतः प्रस्तुत प्रबन्ध में शब्द की व्युत्पत्ति की श्रोर भी कहीं-कहीं ध्यान दिया गया है, पर यह ग्रवंध का उद्देश्य न था; श्र यह स्वतंत्र अनुसंधान का विषय होने के कारण यहाँ श्रधिक नहीं लिखा जा सका है | जिला अ्रलीगढ़ की ब्रजभाषा को सर जाजं ए० ग्रियर्सन ने स्टेंडड ब्रजमाषा माना है । द्राचार्व॑वर डा० धीरेन्द्र वर्मा ने अपने ग्रंथ 'ब्िजभाषा” में लिखा है कि--'मथुरा, झागरा, श्लीगढ़ और बुलंदशहर की बोली पश्चिमी अथवा केन्द्रीय ब्रज मानी जा सकती है । इस रूप को सर्वमान्य विशुद्ध बज भी कहा जा सकता है ।” श्रतएव अलीगढ-ततेत्र की शब्दावली ब्रजभाषा-साहिंत्य के अध्ययन में त्यत्यन्त महत्त्वपूर्ण तथा लाभप्रद सिद्ध होगी । मेरा विश्वास है कि प्रस्तुत शोघ-प्रबंघ की शब्दावली प्रकाशित तथा प्रकाइय ब्रजमाषा-अंथों के समभने सें पर्याप्त सहायता प्रदान करेगी । वर्तमान युग के भारतवर्ष में नागरिक संस्कृति एवं सभ्यता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है । विज्ञान के नये झ्राविष्कार प्रति दिन गाँवों की शोर फैलते जा रहे हैं। ऐसी दशा में हमारे कृषकों तर शिल्पकारों के श्ौजारों तथा कार्यप्रशालियों के बदलने में झ्धिक समय न लगेगा! जव किसानों के सब चेत ट्रेक्टरों से जुतने लगेंगे श्रौर सिंचाई बिजली के कुझों से होने लगेगी, तब देशी हल श्र पैर के कुझों से सम्बन्धित जनपदीय शब्दावली ग्रामीण जनों की जिह्दाओओं से सदा के लिए १ प्रकारक, गव्नमेर प्रेस इलाहाबाद, सन्‌ १८७९ ई० | २ प्रकाशक, बंगाल गवर्नमेंट, सन्‌ १८८५ दै०, प्रका० विहार सरकार पटना, द्वितीय संस्करण, सन्‌ १९२६ इईं०। ञ प्रका० हिन्दुस्तानी एकेडमी इरादहाबाद, सन्‌ १९५७ द°; पु ३५।




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