वर्द्धमान | Vardhmaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आछुख 'सिद्धाथ' महाकाव्यके यशस्वी कलाकार श्री प० अनूपदर्मा एम० ए०, एल० टी०, ने भ्राज श्रपनी प्रतिभाकी चमत्कृत छैनीसे उन श्रद्धितीय जन-गण- ' मन श्रधिनायक भगवान्‌ महावीरकी शान्त श्रौर सतज प्रतिमा गद है जिनकी मू्तिके श्रभावमे माँ भारतीका मन्दिर कताव्दियोसे सूना-सूना लग रहा था यह भारतीय ज्ञानपीठका सौभाग्य है कि उसे इस कलाकृतिको प्रकाशमे लाने श्र श्रुतत-शारदाके मन्दिरमे प्रतिस्थापन करनेका गौरव मिल रहा है । , भगवान्‌ महावीर जंनधर्मके उन्नायक भ्रन्तिम (२ण्वे) तीर्थकर थे । उनके ,५ नाम थे, जो गुणाश्रित थे--वीर, भ्रतिवीर, महावीर, सन्मति श्रौर व्दंमान । प्रस्तुत काव्यके शीषंकके लिए वद्धंमान' नाम ही उपयुक्त समा गया, यद्यपि परारम्भमे कचिने मूल पाडूल्िपिका 'शीषैक सिद्ध-दिला' दिया था भ्रौर हमारे कई प्रकाशनोमे इस ग्रन्थकी योजना इसी नामसे घोषित की रई थी । सिद्ध- जिला भगवान्‌ महावीरकी जीवन-सावनाका चरम लक्ष्य--मोक्ष--का प्रतीक है, ग्रौर सिद्धां के साथ लेखककी कृतियोका स्मृति-सरल युग्म बन , जाता, पर कठिनाई यह थी कि 'सिद्ध-दिला का रीषंक साधारण पाठक को काव्य-चिषयका सुवोध सकेत न दे पाता । दुसरी श्रोर, भगवान्‌ महार्थीर का “वद्धमान' नाम इतना प्रचलित दै कि भगवानकी विहार ग्रौर उपदेश-भूमिका एक खड वगालमे इस नामसे ही (वदैवान-वद्धंमान) प्रसिद्ध हे वद्धंमानः के सम्बन्धमे मुख्य विचारणीय वात यह्‌ टै कि यह ग्रन्थन तो इतिहास है न जीवनी । यदि श्राप भगवान्‌ महादीरकी जीवन-सम्बन्वी समस्त घटनाग्रोका श्रौर तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक श्रथवा धार्मिक परिस्थितियों का करमवार इतिहास इस ग्रन्थमे खोजना चाहेगे तो निराश होना पड़ेगा । यह्‌ तो एक महाकाव्य है, जिसमे कवचिने भगवानूके जीवन श्रौर व्यक्तित्वको भ्राधार” उ




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