व्यापारी का बेटा | Vyapari Ka Beta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के साथ चलती । घर की सजावट भारी, श्रौर महगे तरीके पर की हुई थी, जिसमें गँवारूपन श्ौर श्राडम्बर बहुत था । कमरे का सारा सामान मानो अ्रपने मालिक की सम्पत्ति के बारे में जोर २ से चिल्लाकर बता रहा था । परन्तु, मंहगे फर्नीचर से सुसज्जित घर में यह कज्जाक स्त्री मेज़-कुर्सियों कौर चांदी के बर्तनों से भरी श्रात्मारियों के बराबर तिरछी चाल से ऐसी ,गुजर जाती, जैसे कि उसे भय था कि कहीं यह सब समान उसे पकड़कर तोड़-मरोड़ न डाले । इस व्यापारिक शहर के शोर शरावे श्रौर धूम-धाम से उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी । जब कभी वह श्रपने पति के साथ गाड़ी की सवारी पर जाती तो उसकी श्रपलक भ्राखे कोचवान्‌ की पीठ पर ही जमी होती थीं । यदि उसका पति उससे मेल मरुलाकातियो मे जाने के लिये कहता, तो वहु इन्कार कभी नहीं करती, परन्तु, वहां दूसरे लोगों के साथ वह बिल्कुल चुप श्रौर प्रलग-सी रहती,: जैसी कि, वह॒ घर पर रहती थी । यदि, मेहमान उसके घर पर श्राते, तो उनके सामने खाने-पीने की चीजें रख देती, परन्तु उनकी बातचीत में किसी प्रकार की दिलचस्पी नहीं लेती । वह किसी की ज्यादा परवाह नहीं करती थी । सिफं एक व्यक्ति, जो उसके चेहरे पर कभी जबदंस्ती हल्की मुस्कान ला सकता था, हू था समभदार श्रौर मजाकिया मायाकिन । “यह श्रौरत नहीं, यह तो छड़ी है” वह उसके बारे में कहता--“जरा प्रौर ठहरो, झाखिरकार जीवन भी एक होली है, श्रौर यह सन्यासिनी किसी दिन उत्तेजित हो उठेगी । भ्रभी उसे कुछ समय चाहिये, तब हम देखेंगे कि वह कंसे २ सुन्दर फूल बखेरेगी ।” “क्यों, अश्वमुखी जी” इग्नात दिल्लगी में श्रपनी पत्नी से कहता-- “क्या कुछ सोच रही हो ? क्या पीहर जाने के लिये उदास हो ? श्राश्नो, जरा खुश ह्रो ।” वह शान्त भाव से, उत्तर दिये बिना, उसकी श्रोर देखती । “तुम भिरजे मे जहत समय विताती हो । श्रभी गिरजे के लिये बहुत जल्दी है । तुम्हें श्रपने पापों के प्रायश्चित्‌ की प्रार्थना करने के लिये बहुत समय




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