पूर्वोदय भाग 2 | Purvoday Bhag 2

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Purvoday Bhag 2 by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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|] „न < दग के ; ३१ सर्मोदयः वतमान ओर भविष्य प्रश्न --राऊ के सर्वोदय-समाज-सम्मेलन के बारे में आपकी क्या राय है १ उत्तर--मैं उसे सफल हुआ समकता हूँ । प्रस्ताव एक श्राया शरीर विनोवा के सुभाव पर प्रस्तावक ने सद्मावना के साथ उसे वापस खींच लिया । यह सफलता का ही प्रमाण है । प्रश्न--द्ापका निर्देश शायद श्री युलजारीलाल नंदा के प्रस्ताव की ओर है | उसके बारे में आपको क्या कहना है ? उत्तर--प्रस्ताव श्रपने में क्या चुरा था, पर वात की गहराई तक शायद बह नहीं जाता था । भूमिका में एकांघ वाक्य सरकार के लिए, श्रालोचनात्मक थे जो गेंरजरूरी माने जा सकते थे | काला-वाजार की वुराई पर उसमे जोर था | जिसे उजला माना जाय, उस वाजार मे श्रौर कालेवाजार में विभाजक-रेखा सरकारी कानून की ही है न? नेतिक कानून से देखें तो खुला वाजार भी कोई खास उजला नदीं रहता । वह भी खासा काला समा जा सकता है | श्रसलमे द्राज की श्रथेनीतिदी श्रौधी है । व६ नफे के लिहाज से चलती है शरोर सरकार खुद एक व्या- पारकि संस्था चन जाती है । सर्वोदय माननेवाले कालेवाजार की बात कहकर उजले वाजार को ग्रद्ूता छोडे ओर उसको एक तष्ट श्रपनी सरह




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