कैरली साहित्य दर्शन | Kairali Sahitya Darshan
श्रेणी : साहित्य / Literature
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-पन्द्रह-
दक्षिण की भाषाश्रो ने समास-प्रचुर शेली का हिम्सतपूर्वकं प्रयोग करके
प्राज्मा लिया है कि समास कहाँ तक ला सकते हे श्ौर कहाँ उनकी
दावित कुठित होती है । दक्षिण की कविताओओ में समासो का प्रयोग
योग्य प्रसाण में होने से श्रौर उनके श्रस्त में देवी शब्द श्राने से ली
का श्रोजोगुण श्रपनी पूरी शविति प्रकट कर सका है । श्राधुनिक युग में
गद्य की प्रधानता होने पर समास कम हो गये श्रौर साषा मं तत्सम
शब्दो का प्राच्यं भी घट गया । लेकिन तद्भव शव्द तो बिलकुल देशज
जैसे बन जाते है श्रौर सस्कार तथा स्वाभाविकता दोनो की दावित से
लाभे उरते हे ।
केरल-साहित्य के इस परिचय-ग्रथ में हरएक युग की विशेषता
श्रौर विचार का चिकास तो बताया ही गया है, लेकिन विशेष लाभ यह्
है कि पृष्ठो की मर्यादा के श्रन्दर रहकर उस-उस युग के साहित्य के
ध्रातिनिधिक नमूने, उच्च श्रसिरुचि श्रौर विवेक के साथ ,दिये गए हू ।
फलत हम उस साहित्य के बारे भं ही नहीं जानते, बल्कि उस साहित्य
का थोडा-बहुत श्रारवाद पाकर सन्तोष भी पाते है। भारत की भाषाएं
सरकत से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती है, इस कारण, श्रौर वे सब एक ही
देशा तथा एक ही सस्कृति का श्राविष्कार होने के कारण भी, किसी भी
भारतीय भाषा का श्रास्वाद हिन्दी के द्वारा लेना कठिन नहीं है शतं
यही है कि श्रनुवादक का दोनो भाषाश्रो के स्वभाव श्रौर हेली के साय
श्रच्छा परिचय होना चाहिए । मु कहते सतोष श्रौर हर्ष है कि केरल-
साहित्य के जो. नमूने यहाँ हिर्दी सें पेश किये गए है उनमें केरलीय
शेली की खुदाबू कायम रखी गई है श्रौर हिन्दी दौली की स्वाभाविकता
पर तनिक भी श्राक्रमणण नहीं हुआ है । इस करासात में श्री सीताचरण
दीक्षितजी का कितना हाथ है, यह देखना हमारा काम नहीं । भारतीय
लग्न का श्रादशे ही झ्रभेद को दृढ़ करना है । रत्तमयीदेवी की जन्म-
भाषा केरलीय होने के उपरान्त उन्होने उस भाषा की श्रौर सस्कृत
की भी सर्वोच्च उपाधि पाई है श्रौर सीताचररजी तो हिन्दी के
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