जीवन - शोधन भाग - 1 | Jivan - Shodhan Bhag - 1

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Jivan - Shodhan Bhag - 1 by केदारनाथ - Kedarnath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१९ १. साराधना १३८९४७० आएमनिवेदन-भक्ति : जगत्क्तो सेवाका महन मागे १३८; सिट पुरूपकीो योग्यता १३८, प्रवयक्षके अभावे परो्षकी * साराधना * १३९, सुपासना, भक्ति, आराधना, विकृत आराधना १४० 1 धे. भक्ति ठर धर्म ९४९-१४७ °मर्वधर्मान्‌ परित्यज्य * शोकका रदस्य; सदरुरुशरण जानेमें गृहीत विचार ९४१-९४२; भक्तिको पयैवमान १४३; धर्मेका अथै; ध्म भौर कमैका भेद १४३; श्ररणमावना व बुद्धिका विकास; भंक्तिका अन्तिम लक्ष्य १४४; भक्ति और धर्मकी मर्यादा; शरणका भें १४५; मवित-भार्वोको मात्रा १४६ । ५५, शुरू १४७-१५१ रुरु-खदयुरु, सदुयुरुको आवदयकता किसको १ १४७-१४८; गुरूदिष्य सम्बन्धकी अवधि; शगुर-कृपो ` १४८-१४९; पयनिर्माण १४९; वम मौर भन्य्नद्धा १५०-१५१ 1 ६. सदुगुस्श्ररण ॥ १५९-१६० युरद्षरणके सम्बन्धे महावीर, बुद्ध व गांधीजी; झुरुशादी १५९११५२; दोगी चनिष्ठ, किसको शुरु न बनानेका भिथ्याभिमान १५२; जोवन-शोधनमे सदकारके विय्यकी जरूरत, सका भेक मायै -- “प्रेष › १५३, सद्युस्के सम्बन्धे विचारणीय वर्ते १५४ १५७; सुममें होनेवाठी वार प्रकारषी भूरे चमत्कारकी शक्ति, वाहापूर्णता, विभूतिमत्ता और चारके माससे सत शुर्णोकी खोजनेका आय १५८-१५९; जगदूरर्का अयै २५९-१६० । ७. गुरुमफ्ति और पूजा १६०-१६४ सुरुपूनाका गलत आदर्श १६०-१६१; गुर गोविन्दसि्का टृ्टान्त १५२; मूतिपृजाकी मर्यादा १६२-१६४ 1 ८. सदूभाव ओर सरमंग १६५-१६८ सतमव -- मतभक्तिका यै, एनुमान भौर भगदका सुदहहिरण १६५२६६१ सुक्तका जीवनमे सुपयोगी स्यान १६६; मविेवयुक्व स्नपूजा ६६७ । ९. भपितके भरदर्णोका त्यं १६९-१७० अक्नि-भावक्त भ्रुचित्त व अनुचित विनियोग




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