संसार के साहित्य का भूषण आत्म - कथा | Sansar Ke Sahity Ka Bhushan Aatm - Katha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जनरल स्मट्स का विश्वासघात (0) था । पर जात यह थी, कि इस समय उन लोगों पर इसका ` कोई मसर नहीं हो सकता था । दम सोए हुए आदमी को तो जगा सकते हैं, पर सोने का ढोंग बनाने वाले को नहीं । यहीं हाल उन गोरे व्यापारियों का थी हुआ । वे तो काछलिया सेड को दवाना चाहते थे, उनकी छेन-देन थोड़े ही डूबने चली थी । मेरे दफ्तर में छेनदारों की एक सीटिंग हुई । मैंने उन्हें साफ साफ शब्दों में कदद दिया, कि आप इस समय जो काछलिया सेठ कौ दवाना चाहते हैं उसमें व्यापार-नीति नहीं राजनैतिक चाल है। व्यापारियों को यह काम शोभा नहीं देता । पर वे तो तर भी चिढ़ गये । काछलिया सेठ के माल और उधार दोनों की फेदरिस्त मेरे पास थी । उसे मैने उन व्यापारियों को दिखाया । यह भी सिद्ध कर दिखाया कि उससे उन्हें घ्यपना पूरा धन मिल सकता है, और कहा--इतने पर भी यदि आप इस तमाम व्यापार को किसी दूसरे आदमी के हाथ बेंच देना चाहते हों तो काछलिया सेठ अपना तमाम माल छोर उधाई खरीदार को सोंपने के लिए थी तैयार हैं । यदि यह. भी आपको स्वीकार न हो, तो दूकान में जितना भी माल है, उसे मूल कीमत में आप ले ले । केवल माल से यदि काम न चढे तो उसके बदढ़े में उधघाइ में से जिसे पसन्द करं आपले ले ! ” थाठक सोच सकते हैं कि गोरे व्यापारी.यदि इस प्रस्ताव को मंजूर कर ठेते तो उनकी कोई हानि नहीं दोती । ( और कई: समवकिलों के संकट-समय में मैने उनके कजे की यही व्यवस्था कीः धी ) पर इस समय व्यापारी न्याय न चाहते थे । कालिया नहीं मुके और वे दिवालिये देनदार साबित हुए ।




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