कालिदास का नाट्य - कल्प | Kalidas Ka Natya Kalp

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Kalidas Ka Natya Kalp by श्यामारमन पाण्डेय - Shyamaraman Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मामुख ॥ ११ पचा दिया था क्रि इतने राजनेतिक उत्यान-पततन, सामाजिक उथल-पुथल तथा विदेशी भाक्रमणों के वाद भी भारतीय संस्कृति एवं नादट्यकला जीवित है । इनका नाटक अमिज्ञानशाकुन्तलम्‌ विश्व साहित्य में अद्वितीय सिद्ध हुआ है । इनकी सबसे बड़ी देन यह है कि इन्होंने प्राचीन कथाओं को इस प्रकार संशोधित एवं परिवतित कर नाटकीय वस्तु के रूप में सुनियोजित किया है कि यट्ठ मावव के लिए उपदेश- प्रद, विश्रान्तिकारक एवं परमानन्ददायक सिद्ध हो रहा है। इससे नायक एवं नायिका के लोकानुकरणीय चरित्र का निर्माण हुआ है तथा प्रमुख श्'गार रस के साथ विविध रसों की घारा प्रवाहित हुई है । प्रस्तुत शोध-प्रवन्घ में - कालिदास की नाट्यविषयक धारणा को प्रकट करने में मु्े कहां तक सफलता मिली है इसका निर्णयं सहदय सुधी विद्वान ही कर सकंगे--““हेम्नः संलक्ष्यते ह्यग्नौ विशुद्धिः श्यामिकापि वा” ।-- कहाँ वाणी के अखण्ड देवतास्वरूप कालिदास का प्रतिभासम्पन्न व्यक्तित्व भौर कर्हां मेरे जसा अभाव एवं षांसारिक क्लेशो के वीच जीवन-यापन करने वाला साधारण प्राध्यापक । अगर उनके रूपक में सुव्यक्त उनकी नाट्यं-विभतियां को मै पहचान सकाभौर हुृदयंगम कर संका हूं तो यह उन्हीं की कृपा तथा माशुतोष ज्योतिलिंग वावा वनाथ का साशीरवदि है। महापुरुषों के गुणगान में यदि कुछ गौरव मिल जाय तो ग्रह उन्हीं की महिमा हैं। मुझे तो किसी भी प्रकार के गौरव मे असमर्थता की ही प्रतीति हो रही है-- । मन्दः कवियशश््रार्थी गमिष्याम्युषहुास्यत्ताम्‌ । 5 पराशुलभ्ये फले लोभादुद्वाहुरिव -वामनः ।।-- मनैक परितापो एवं विध्न-वाधा्ओं कै वाद मेरा यह मांगलिक अनुष्ठान परिपूणं हुमा । एतदथं देवाधिदेव सदाशिव के पादपद्मों पर मँ नत्तमस्तक हूँ । उनकी कृपा से जिस आशा का वृक्ष मैंने लगाया था, अाज वहु फलवान्‌ हमा । 'इस फल,. प्राप्ति में जिन महातुर्भावों का आशीर्वाद, सहानुशुति, सट्टायता एवं सहयोग मुझे प्राप्त हुआ, उनके प्रति कृत्तज्ता शापित करते हुए मैं परम प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं । स्वभ्रथम मैं उन विद्वानों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं जिनकी छृत्तियों से प्रस्तुत ग्रन्थ को तैयार करने में मुझे सहायता मिली है । पूज्यपाद प्रो० झाचायं विश्ववाथ मिश्र; भुतपुर्व अध्यक्ष, स्नातकोत्तर ह्विन्दी- विभाग, मगध विश्वविद्यालय, वोधगया ते मुञ्चे इस विषय पर शोध-प्रबन्ध लिखने = स्च (+




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