गीतामृत | Gitamrit

Gitamrit by गोपाल जी - Gopal Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: गीतामृत : संकोच से। कह अपने बान्धवो, चुजुर्गों श्रौर गुरुजनं को देखकर दुःखी होरहाहै। जो उसके सन्मुख युद्ध में मुकाबला करने खड़े हैं उन्हें देखकर वह कहता द- “कथं भीष्ममहं संख्ये द्रोशं च मधु्रूदन । इषुभिः प्रतियोत्स्यामि पूजार्हावरिष्ूदन'' ॥ किस प्रकार में भीष्म और द्रोण को अपने तीरों से बींधने का साहस कर सकता हूँ, जबकि वे पूजा करने के योग्य हैं-- “गुरून हत्वाहि महानुभावान्‌ । श्रेयो भाक्त मेक्ष्यमपीह लोके ॥ गुमओं को मार कर में इस संसार में किस प्रकार जीवित रह सकता हूँ। उनको मार कर राज्य भोगने की अपेक्ता तो भिना मांग कर गुजारा कर लना उत्तम है। इस व्यथा से यह पुस्तक आरम्भ होती है। भगवान्‌ कृष्ण उसे समभाते हैं श्रौर युद्ध न




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