वीणा - ग्रंथि | Vinda Granthi

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Vinda  Granthi by श्री सुमित्रानंदन पन्त - Sri Sumitranandan Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चीख २ बढ़ा और भी तो अंतर जिनको तूने सुखद सुरभि दी मा जिनको छवि दी सुंदर में उनके ढिंग गई व्यग्र हो तुभे ढूढ़ने को सत्वर मधु बाला. बन. मेंनें. उनके गाए. गीत गूज... मृदुतर पर में अपने साथ तुझे भी भूल गई मोहित होकर १९१८ डर




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