भ्रमर गीत सार | Bhramar Geetsar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
297
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे -ररेन
म
बन कर् रह मई हैं । इन बातों से बचकर ही सूर का चरित्र श्रसीम चेत्र का
श्रधिकारी हौ मया. ।
सूर के कृष्ण राम को भॉति आदर्शवादी शरीर प्रौढ़ विचारों के नहीं हैं ।
मै तो श्रपने माई बलराम की भी शिकायत यशोदा माँ से करते हैं । बलराम
कृष्ण को चिढ़ाते हूं, इष्ण क्रोध श्रौर अपमान से लाल हुए रुश्रॉसे दोकर
माँ के पास जाकर श्रपने उद्गार प्रकट करते हैं, माँ बड़े दड्ड से उन्हें चुप
करती हिं तथा सान्तना देती हैं । सुर के ये बाल कृष्ण श्रदूभुत हैं, श्रद्धितीय हैं
्रीर द्र इसी कार्ण निश्चित रूप से इस क्षेत्र के सम्राट हैं ।--
' मैया मोहि दाऊ बहुत खिकायों |
मो सो कहत मोल कौ लीन्दों, तू जसुमति कब जायो ॥
कहा वहीं या. रिस के मारे खेलम'हौं नहिं ,जात ।
पुनिन्पुनि कदत कौन. है माता, को. दे तुमये तात ॥
योरे नन्दू॒ जसोदा. गोरी तुम कत श्याम. शरीर ।
+. चुटकी दै-द सत , ग्वाल सब. सिख. देत बलबीर् ॥
दू मोही को... मारन सीवी . दाउ्दिं दबहं न , खीर ॥
रद | 3 म
सनद कान्द बलभद्र चबाई जनमत ही कौ धूत ।
सूरश्याममोगोधन कीर, दौ माता त् पूत ॥
लसी के राम कीमाँतिसूर के कृष्ण न किसी को उपदेश देते हैं श्रीर
उनसे कोई श्रातकित दी रहता है। उनके बड़े भई बलराम उन्हें चिढ़ाते हैं,
रे कृष्ण एक साधारण बालक की मॉति ही रोकर माँ के पास भागते हूं |
क यद बालं. चित्रण इतना मार्मिक, स्वाभाविक श्रौर_सप्राण है कि
मः
$तना ही चाजा श्रौर मार्मिक लगत्ता दे जैसे ाज की परिस्पिद्तियों में ही
प्रमी ही लिखा गया हो । श्रपनी इन्दीं विशेषताश्रों के कारण सूर हिन्दी
शरदि चनौर हिन्दी भाषी जनता में श्राज भी एक जीवित शक्ति है
सपरा कहत ई स्याम खिसाने !
1 ६ 3 €
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