अब्राहम लिंकन | 1669, Abraham Lincon

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1669, Abraham Lincon by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जितना अधिक वज़न उठा ऐेता और कितनी शक्ति के साथ दुहाडे के वार करता था, इस भारे में भाश्रयंजनक विविध कथाएं प्रचलित हैं। ऐसे नम और विचारणील वालक के लिए, सिषे हय मँ गु महाकक्षा छिपी हो, ऐसी शक्ति का पाया बाना वरदान-खहूम था, और उस वातावर मं एसा होना मी अत्यत ही आवश्यक था । लड़कपन में लिंकन ने कई तरह के काम करने में कुशलता दिखायी । उसने कंभी यह विरोध नहीं प्रकट किया कि इस तरह का कड़ा शारीरिक श्रम उसके मानसिक 'विकास के अनुकूल नहीं है । अपने साथ के लड़कों में उसका काफी आदर था इम्डियाना भौर केन्टकी मं जने वाले लोगों में उस समय इतना पुरुषार्थ शेष्र नहीं था जिसके लिए केन्टकी पहले प्रसिद्ध था! फर भी पहाड़ी सीमान्त प्रदेशों के लोगों की तर इनकी सफलादून के. इस सिद्धान्त में मान्यता थी कि उठते हुए यौवनकाल में मनुष्यों को चाहिए कि वे अपने विरोधो को रष से सुलझायें | युवा लिंकन के ऐसे दी कुछ गंभीर झगड़े संतोषजनक रूप से उसके पक्ष सें निगीयक रहे। इन दंगलों ने कम। दूगे-फिसाद का रूप ग्रहग नहीं किया क्योकि वहाँ इस तरह की घटनाएं घटनी असामान्य नहीं थी । अतएव रसिक का स्वाभाविक व विचित्र विकास ठीक उसी ढंग पर हुआ। यही कारण था कि बाद में तरह तरह के लोगों से मिलने पर मी न तो उसे आत्मग्लानि ही हुईं न उसमें दूसरों पर अपने को हावी करने की त्ति दी पैदा हुई । अपने साथियों में व्याप्त एक सामान्य रुचि का लिकन में पूर्णतया सभाव था | बहुत से बनगासी इंदूकों का निशाना साधने में अभिरुचि रखते थे । शिंकन ने बताया कि जब बहू साठ वर्ष का था, तत्र उसने एक मुर्गी पर निशाना साधा था, उसके वाद कमी मी बंदूक नहीं उठायी । बचपन में एक बार दुदु पक्षियों के निरथेक वध किये जाने पर उसने कड़ा विरोध प्रदर्शित किग्रा | इससे उते अत्यंत पीड़ा हुई । यह अनुमान लगाया जा सकता है किं वह सभी तरह की मारकार से घुगा करता था । असहाय व्यक्तियों व निस्सदाय पशुओं की महदायता लिंकन किस प्रकार शिया करता था, इस बारे में भी कई कथ'एं प्रचलित हैं। यह कद्दा जाता है कि उस पर अपने आसपास के वातावरण का राह प्रभाव पड़ा और इस तरह के उसके कार्यों से लिंकन का मी चहुतों पर प्रभाव पड़ा | आज भी इस आश्चर्यजनक कथा को दुद्व लाता है कि कैसे उसने बर्फ में फैँसे एक शरावी की रक्षा करने में कड़ी से-कडी बाघायों की परवाह नहीं की ।




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