श्री श्री चैतन्य - चरितावली भाग - 4 | Shri Shri Chetany-charitavali Bhag - 4

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Shri Shri Chetany-charitavali Bhag - 4 by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रुके षृन्दावन जानेसे भक्तोको विष्ट ५ प्रमुके द्यनोंफे लिये उत्सुकता प्रकट कर रही थीं, इसलिये महाराजने शथियोपर जरीदार पढें डलवाकर उन्हें रास्तेके इधर-उधर खड़ा कर दिया, जिससे वे महाप्रमुके भलीभौंति दर्शन कर सकें । महाप्रभु प्रेमें पागल हुए मन्द-मन्द गतिसे उधर जाने लगे । उनके पीछे हाथी, घोड़े तथा बहुत से लोगोकी भीड़ चलीं | इस प्रकार सभी भक्तोंके सहित प्रभु चित्रोत्पला नदीके किनारे आये । वहाँ महाराजकी ओरसे नौका पहलेसे ही तैयार थी । मद्दाप्रभुने भक्तोंकि सहित चित्रोत्पला नदीकों पार किया और चर्दारमं आकर समीने रात्रि व्यतीत की ! जहँसे प्रभुने चि्रनोत्पलाकों पार किया, बरही महदाराजने प्रभुकी स्मृतिमें एक बढ़ा भारी स्मृतिस्तूप व्रनवाया ओर उस धाटको तीर्थं मानकर स्नान करनेके निमित्त आनि रगे । गदाधर पण्डितका नाम तो पाठके जानते ही होंगे } ये महापरमुकी आशासे क्षेत्र-संन्यास लेकर पुरीके निकट गोपीनाथजीके मन्दिरमें उनकी सेवा करते हुए नियास करते थे) किसी ती्थमें घर-द्वारकों छोड़कर प्रतिशञापू्यक रदनेको क्षेत्र-संन्यास कहते हैं। वहाँ रहकर भगवत्त-प्रीत्यथ ही सब कार्य किये जायँ; इसी सझुल्पसे पुरुषोत्तम-श्लेत्रें गदाघरजी निवास करते थे । जब महाप्रम गीड-देगको चलने लगे, तव तो उरं पुरुपोत्तभ-कषेत्रमं रहना असदा दो गया और वे सब-कुछ छोड़-छाड़कर ग्रमुके साथ हो लिये । महदाप्रमुके चरणोंमिं उनका दृढ़ अनुसग था; वे महाप्रभुको परित्याग करके क्षणमर भी दूसरी जगद रहना नहीं पाहते थे । महाप्रमुने इन्हें बहुत समझाया; किन्ठ ये किसी प्रकार भी छौटनेको रैयार नहीं हुए । जव महाप्रसुने अत्यन्त शी आग्रह किया, तत्र ्ेमजन्य शेषके खसं इन्हने का--आप मत्रे बिवो क्यों कर रहे हैं | जाइये, मै अपके साय नही जाता । में तो नवद्दीपर्म दाचीमाताके 'दर्बानोंके लिये जा रहा हूँ । आप मेरे रास्तेको तो रोक ही न लेंगे । बरस; 'इतना दी है कि मैं आपके साथ नहीं चढूगा ।” इतना कहकर ये प्रभरे .




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