उपनिषत्सारकी | Upnishtsaraki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)केनोपानिपड्ापांतर । (९)
और निस आत्माकी प्रेरणासे वाणी नाना मकारके शब्दोकू उच्चारण करे है
किस अत्यकदेवकूं ठुम ब्रह्मरुस जानो । और जिसका विपयरूपसे पुरुप उपा-
सना करते हैं सो विपय जडपरिच्छिन्न पदार्थ बह्न वहीं है ॥ ४ ॥ जा.
आत्मादं मनकरि युरूप गही जान सकता ! ओर जितत आत्माकारि भका-
शित हुआ मन नाना मकारके संकल्प विकल्पकूं करे है ऐसे महात्मा कहते
हैं ता साक्षीकू नरसरूप जानो । ओर जिस परिच्छिन्न जडपदार्थकी अह्लरूप
जानकरि पुरुप उपासना करते हैं सो ब्रह्म नहीं है॥ ५ ॥ जिस आत्माकू
नेत्रकारे पुरुप नहीं देख सकता ओर जिस रवमकाश आत्मकरि नेदं विषय
करे हे। मेरे नेत्र हैं ऐसे पुरुप जाने हँ पिष भत्यगात्मादूं बरहमरप जानो ।
जिस परिछिन्न भनात्माकी पुरूष उपासना करे हैँ सो बह्म नरी है ॥ ६॥
जिस आत्मादिवकूं श्रोचसे पुरुप नहीं सुन सकते तथा जि साक्षीकरि यह
ओन्र मकाशित होवे हे सो साक्षी बहन हे ऐसे जानो । जित्तकू विषय मानकारे
पुरुप उपासना करे है सो नह नही है ॥ ७ ॥ और माणकी जो किंयादचि
है तथा अंतः्करणकी जो ज्ञानद्त्ति हैं तिस कियाबति तथा ज्ञानदत्तिसहित
दुआ .घाणइंद्िवि जा आत्माकूँ विपय करे नहीं ओर जिस आत्माकारे मेरा
घाणईंदिय अपने व्यपारकूं करे हैं ऐसे आत्माकू ठुम बल जाना । जाकू
विपयरूप जातकरि पुरुप उपासना करे हैं सो विषयरूप अह्ल नहीं है ॥ < ॥
ठेते हेय उपडदेयसे शून्य बह्लात्माका युरुते शिष्यके भति उपदेश करा!
शिष्प आत्माकूँ मन वार्णीका विपयरूपसे नहीं जान लेगे या अशिमायस युर
शिष्यकी परीक्षा करे हैं । हे शिष्य ! यदि हूं माने अल्के स्वरूपकू में सुखेन
नहीं जानता हूं तब तुमने अल्पही ब्रह्कके स्वरूपकूं जाना। यथाथ बह्का
स्वरूप नहीं जाना । और अविंदेव उपाधिकरिं विशिष्ट ह्लकू जाना तार्गो
तुमने यथार्थ बहके रवरूपकूं जाना नहीं । हे शिष्य ! में यह मानता हूँ ना
अब भी ठुमको ब्मका विचार करना चाहिये । विचार किना यथाथ हका
योय होना दुर्घट है। ऐसे छरुने परीक्षाके ठेनेवासते कहा तव ष्य एकात्
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