चिन्तन के क्षणों में | Chintan Ke Sharno Me
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३९
८१. यह क्यों समझ रखा है कि उराये कैर् वाख्क
कावू मे ही नहीं था सकता !. एक बार प्रमदं प्रयोग करके
तो देखो । तुम्हें सफलता होगी ।
८२. पता नहीं, वह आदमी कैसा रहा होगा, जिसमे
ईदवर का डर दिवाकर अपने साइयों पर अधिकार जमाने की
सोची होगी ।
३, आदमी इंदवर से डराया जाता है । लायद उसीका
यह परिणाम है कि बह अपने बच्चे को हौवा से डराता है,
कुत्ते-बिल्ठी तक से डराता है ।
८४. डरानिवाले को अगर यह मासयो क्षि डर के
वथा-क्या बुरे नतीजे होते हैं, तो वह अपने बच्चे को डराने
की बात सोचे ही नहीं ।
८५. याद् रखो, डर बालक के हृदय में बड़ी जरुदी
जड़ पकता है भौर जल्दी ही गहरी जड़ जमा देता है।
वह फिर आसानी से उखाड़ फेंका नहीं जा सकता ।
८६. हमसे कहा जात्। दै किं हमारे अन्दर ईदवर दे
और यह हम जनते हो हैं कि हमारे अन्दर डर है । तब
कया हम यह कह सकते है कि इंस्वर के अन्दर भी डर है
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