चिन्तन के क्षणों में | Chintan Ke Sharno Me

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Chintan Ke Sharno Me by महात्मा भगवानदीन - Mahatma Bhagwandin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३९ ८१. यह क्यों समझ रखा है कि उराये कैर्‌ वाख्क कावू मे ही नहीं था सकता !. एक बार प्रमदं प्रयोग करके तो देखो । तुम्हें सफलता होगी । ८२. पता नहीं, वह आदमी कैसा रहा होगा, जिसमे ईदवर का डर दिवाकर अपने साइयों पर अधिकार जमाने की सोची होगी । ३, आदमी इंदवर से डराया जाता है । लायद उसीका यह परिणाम है कि बह अपने बच्चे को हौवा से डराता है, कुत्ते-बिल्ठी तक से डराता है । ८४. डरानिवाले को अगर यह मासयो क्षि डर के वथा-क्या बुरे नतीजे होते हैं, तो वह अपने बच्चे को डराने की बात सोचे ही नहीं । ८५. याद्‌ रखो, डर बालक के हृदय में बड़ी जरुदी जड़ पकता है भौर जल्दी ही गहरी जड़ जमा देता है। वह फिर आसानी से उखाड़ फेंका नहीं जा सकता । ८६. हमसे कहा जात्‌। दै किं हमारे अन्दर ईदवर दे और यह हम जनते हो हैं कि हमारे अन्दर डर है । तब कया हम यह कह सकते है कि इंस्वर के अन्दर भी डर है




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