देवताओं की छाया में | Devtaon Ki Chhaya Main

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्चास ८ोनो अम (बड़े नाटक और एकाफी ) एक दूसरे से प्रथक श्रना अलग रसा अस्तित्व रखते हैं. उसी श्रकार जैसे अ।छतिक टश्यों के चिन चमत को केला और जीवित नस्तुलों के चिन्न खींचने की कस्‌(, दोनो सिनक्ला की दो विभिम शला है आओ. आवना अल अन अस्तित्व रखती है ओर एकमे निय दानि + चरथं दूसरी में [५.५८। पोना नह | नाटक की इन दौनों शाखोओं में बड़ा अन्तर यद्‌ है पि उपन्यास की भोति लभ्ने नाटक से नाटककार शब्द पर शन्द, लनिध पर्‌ चाकथ और दृश्य पर दृश्य के अयोग से इच्छाउुसार प्रभव योर चातावर्थ पैंदा करने से सफल हो उता है। एकाफो में रोक के पास बटनां के विस्तार आर पोनों के चसि्ति-चिनिण के लिए कोई अवसर नहीं होता । उसकों पार्वभूसि भी सीमित होती दै ॥ उसके पानो की भेकी मान ही दर्शक दुख सकते है । एकॉकी में समस्त परिस्थिति को एकपस सपने ब्शकों को समसीला न।८क- कर के -लिए आनद्य है | सस्ये स^म वसो के वदसे सित पर व्मथे-पूर्त सम्मषियों से काम , सेन पडता है | फिर जद =ड। ना८च वर्प शरोर सदिथों तक्को. श्रषनी वोदा से वोँध, सक््ताहै, एककोकार्‌ जीवनं की की चनन्यमनस्क वडी ही का च> कर्‌ सकता है। उस एक घड़ी मे उसे कथानन), पानं के चरित- चिन अयेव। चातविस्थ को उपस्थित करना होता है । # एकांकी और कहानी कुछ आालोचेकों का विचार दै कि एकाकी कानी हीर्का रगभष पर खेला जमे वाला संस्करण है। श्री चन्रशुष्त विसर ने ५ स्यान पर ऐसा लिखा भी है। किस्ु ययपि . बहुत सी अंग्रेजी कह चियों सफलता के साथ एकाकी नाटकों में परिवर्तित की गयी है, रनय मैं ने भी तनी कदा के रेडियो रूपन्तर नाकोट ककि १६.




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