हमारी जीवन संस्कृति | Humari Jeevant Sankrati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १५ ग्रन्थों में किया गया है, उनमें श्रलग-श्रलग श्रष्यायों में धरम, दन, कला, साहित्य श्रादि का ही विवरण मिलता है। सामान्यतः संस्कृति के ये विवरण संस्कृति के इतिहास बन जाते हैं। प्राचीनकाल से लेकर श्राघुनिक काल तक घ्म, दर्शन, कला, साहित्य श्रादि के विकास का लेखा ही किसी देश की संस्कृति का परिचय कहलाता है । संस्कृति मचुष्य की रचना है । प्राकृतिक जीवन के श्राघार पर मनुष्य ने जिन सुन्दर श्रौर मंगलमय रूपों की रचना की है उन सबको संस्कृति के भ्रन्तगंत मानना उचित है। धमे, दर्शन, कला, साहित्य आदि मनुष्य की श्रेष्ठ रचनाएँ हैं । अतः इनको संस्कृति का भ्रंग मानना संगत है। इन रचनाओं के क्षेत्र में प्राय: विकास होता है। दक्षन, कला, साहित्य श्रादि के नये-नये रूप कालक्रम से रचे जाते हैं । इनके विकास का लेखा संस्कृति का इतिहास वन जाता है, यह पु्णंतः संगत है। किन्तु घमे, देन, कला साहित्य श्रादि के इतिहास में ही संस्कृति का लेखा पूणं नहीं हो जाता । इनके श्रतिरिक्त संस्कृति का एक श्रन्य रूप भी है जिसकी किसी कारण से संस्कृति के इन एेति- हासिक विवरणों में उपेक्षा होती रही है। रीति-रिवाजों के नाम से संस्कृति के इस रूप का थोड़ा सा परिचय संस्कृति के इन ऐतिहासिक विवरणों में भ्रवश्य मिलता है, किन्तु ऐतिहासिक दृष्टिकोण के कारण इनका परिचय भी अतीत के प्रसंग में ही दिया जाता है। यह परिचय संस्कृति के इस रूप के साथ समुचित न्याय नहीं करता । संस्कृति के इस टूसरे रूप को ऐतिहासिक की श्रपेक्षा जीवन्त संस्कृति कहना अधिक उचित होगा । संस्कृति का यह रूप भी शझ्रतीत में उदय होकर एक दीर्घकाल से चला श्राता है। इस दृष्टि से इसे भी ऐतिहासिक कहा जा सकता है किन्तु संस्कृति के इस दूसरे रूप का इतिहास संस्कृति के पहिले रूप के इतिहास से भिन्न होता है। संस्कृति के पहिले रूप की अधिकांश रचनाएँ इतिहास मात्र रह जाती हैं। समाज के वर्तमान जीवन से उनका कोई जीवन्त सम्वन्घ नहीं होता । इस संस्कृति की वहुत सी रचनाएँ तो इतिहास




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