अन्तराष्ट्रीय अर्थशास्त्र | Anterrastriya Arthsastra
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
446
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. डी. एन. गुर्टू - Dr. D.N. Gurtoo
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रन्तरष्टरीय व्यापार के पृथक् सिद्धान्त कौ प्रावश्यक्ता 3
दुनिया में होने हैं जहाँ माल वी गति तथा उत्पादन के तस्व की गतिशीलता भपूणों
होती हैं 11
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का जन्म
(पाए एपंछांग जे. प्राशाातणान वपव)
प्रस्तर्राप्ट्रीय व्यापार का प्रचलन अ्ननेक कारणो से लोकप्रिय वनारै 1 अ्नेव
स्थिति गे ने इसके जन्म एवं विकास पर प्रभाव डाला है । इसकी परम्पराप्रोकेजन्म
बा मूल कारण भ्रस्तर्रा्ट्रोय धम-दिभाजन है । इस सम्बन्वमे मिं हैरॉड लिखते
हैं- साधारात विनिमय को श्रम-विभाजन के द्वारा भरावश्यक वनायां जाता है ।
जद यह श्रम विभाजन राष्ट्रीय सीमाप्रो को पार बर लेता है ता विदेश व्यापार को
जन्म होता है । इस प्रकार भ्न्तर्राप्ट्रीय व्यापार प्रन्तर्राप्ट्रीय श्रम विभाजन का
झावश्यक परिणाम है ।”* प्रत्यय देश स्वावलम्बी बनने के लिए एक विणाल भरनुपात
में श्रमिकों को प्रमुख वस्वुपो के उत्पादन मतया शेप श्रमिकों को प््य वस्तुप्री के
उत्पादन में लगाता है । जिस प्रकार दो व्यक्तियों की पोग्यताएं एवं क्षमताएं एक
उसी नहं होतीं उसौ प्रकार दो देशों वी योग्यताम्रों एव क्षमताम्ों के बीच भी
भ्रसमानता पाई जाती है । जो देश ज्सि वस्तु के उत्पादन मे प्रधिक क्षमता एव
कुशलता रखता है. उसे वही वस्तु उत्पादित करनी चाहिए । इससे वह स्वय भी
लाभान्वित होगा श्रौर दुसरे देश भी स्पय उत्पादन परने की श्रपेक्षा उस चस्तु का
प्रायात करन से लाभ में रहेंगे । प्रत्पेक देश की सुविधाएं भिन्र होती है । झत उनके
बीच स्वभावत ही श्रम-विभाजन हो जाता है ।
श्रम विभाजन को प्रावश्यक एवं उपयोगी बनाने वाली भ्रनेश परिस्थितियाँ
हैं (1) देशों के प्रातिक साधनों का स्तर --दुछ देश खनिज पदार्थों की दृष्टि से
सम्पन्न होते हैं जबकि टूसरें देशों मे इनका भभाव होता है । कुछ देशो का जलवायु
गुछ चीजों वे उत्पपदेन के लिए बहुत अच्छा होता है भौर इसलिए वहाँ ऐसी चीजों
घो बहुतायत मे उत्पन्न करके उनका निर्यात त्रिया जाता हैं । इस प्रकार प्राकृतिक
सायन प्न्तर्राप्ट्रीय श्रम-विभाजन को जरूरी बना देते हैं ।
(व) विभिन्न देशों की जनसस्या ध्रत्मान होती है--अधिक् जनसस्या वाले
देग इतना अधिक उत्पादन नहीं कर पाने कि उनवी जनता के लिए वह पर्याल हो
राके । दूसरी धोर बम जनसस्या वाले देशो में सामग्रियों का उ पादन वहाँ की जनता
म से श्रधिक र्या जाता है । यह स्थिति श्रायात भ्रौरनिर्यातिकोजकूरीवना
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