नरपिशाच | Narapishach
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
194
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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, ॐ
फ्या यही ध्यान तुलं लजित श्य देता है ? क्या तुश्चारै यदी इच्छ कुल सं-
सार धनी ओर अतुल सम्पत्ति का अधिकारी हो नाये 'जितमें किप्ती को भी दरिद्रता
का कष्ट न भोगना पड़े ! श्राह यदि ऐसाही होता तो कभी तुझे इस हुनर का ध्यान
भी न होता । मेरे सामने इज्जत का नाम न लो ! मैं इससे जलही मरता हं | क्या तुम
दर नदी हो-क्या तुम अपनी इसी कोठरी में पड़े एक सामान्य व्यक्ति की भांति
झपने जीवन के दिवत नहीं व्यतीत कश्ते--नादान युवक | यदि तुम गरीव पौर द्-
रिद्री न होते तो मैं कभी तुझ्ारे पात्त न आता !
बदर के इन तानों स युवक ने दुखी हो के कहा--
““झाप ने केसे जाना महाशय ! कि मेरी अवस्था चेसीही है जेसी कि हह
चुह्ढा-( और भी कडाई से) भने कते जाना? स्या तुष इत्ते इनकार करते रोः
इतना कहके उसने इशारे की तरह उन टूटी फटी दीव ४
चमकतती हुई नक्ते उप्ते फटे पुराने चनि पर पड़ी -उपने इशारे से उस दूदी कु-
रप्ी ३2 येवुल - गड हुवे चो लटे--तधूदी कलर्मो-खाली रकाग्री--श्रौर इपक्रे उ
परान्त इसके फटे पुराने वख को देखा ।
वु्ढा-( किर से ) कया तुम इसमे इनकार काते हो !
-(नेत्रों में नल भर के ) भगवान जानता हे कि में इससे इनकार नहीं कर स-
ढता, हाय ! मेरी अवस्था तो उससे भी हीन है !
बुद्ढाी--( वद़ीही सम्पता से ) अपनी अवश्य से भगवान के नाम का सम्जन्व क्यों क-
रते हो-अच्छा श्रव यह बताओ करि यह तुद्यारी तस्वीर कितने दिनों मे तैयार
हो जवि ?
इस प्रश्न के सुन्तेही युवक चिन्नकार ने अपने आंपू पोछ डाले क्योंकि उसे कुछ
शराश्च हो गई थी, ब्ौर फिर इसके उपरान्त उसने कहा--
एक मास में ! ”
वबृद्ध--ओर फिर इसके उपरान्त; मुझे आशा हे कि तुम अवश्यही इसे वच्ोगे
चि्रकार--८ शीघ्रता से ) इच्छा तो एेष्ीदी है केवल इच्छाही नहीं वरन भगवान से
` प्रार्थना भी यदी है ।
बु्धा-तो -ला वड दूढा मुसीविर जो तुद्य.रे मकान से इद आगे, उस गली में रहता
है, इसका कया मूल्य देगा १... ;
५
यहं सुनके युवक ने वड्ही आश्चयं म पृच्छा
जि
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