नरपिशाच | Narapishach

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ 2 1 4५ , ॐ फ्या यही ध्यान तुलं लजित श्य देता है ? क्या तुश्चारै यदी इच्छ कुल सं- सार धनी ओर अतुल सम्पत्ति का अधिकारी हो नाये 'जितमें किप्ती को भी दरिद्रता का कष्ट न भोगना पड़े ! श्राह यदि ऐसाही होता तो कभी तुझे इस हुनर का ध्यान भी न होता । मेरे सामने इज्जत का नाम न लो ! मैं इससे जलही मरता हं | क्या तुम दर नदी हो-क्या तुम अपनी इसी कोठरी में पड़े एक सामान्य व्यक्ति की भांति झपने जीवन के दिवत नहीं व्यतीत कश्ते--नादान युवक | यदि तुम गरीव पौर द्‌- रिद्री न होते तो मैं कभी तुझ्ारे पात्त न आता ! बदर के इन तानों स युवक ने दुखी हो के कहा-- ““झाप ने केसे जाना महाशय ! कि मेरी अवस्था चेसीही है जेसी कि हह चुह्ढा-( और भी कडाई से) भने कते जाना? स्या तुष इत्ते इनकार करते रोः इतना कहके उसने इशारे की तरह उन टूटी फटी दीव ४ चमकतती हुई नक्ते उप्ते फटे पुराने चनि पर पड़ी -उपने इशारे से उस दूदी कु- रप्ी ३2 येवुल - गड हुवे चो लटे--तधूदी कलर्मो-खाली रकाग्री--श्रौर इपक्रे उ परान्त इसके फटे पुराने वख को देखा । वु्ढा-( किर से ) कया तुम इसमे इनकार काते हो ! -(नेत्रों में नल भर के ) भगवान जानता हे कि में इससे इनकार नहीं कर स- ढता, हाय ! मेरी अवस्था तो उससे भी हीन है ! बुद्ढाी--( वद़ीही सम्पता से ) अपनी अवश्य से भगवान के नाम का सम्जन्व क्यों क- रते हो-अच्छा श्रव यह बताओ करि यह तुद्यारी तस्वीर कितने दिनों मे तैयार हो जवि ? इस प्रश्न के सुन्तेही युवक चिन्नकार ने अपने आंपू पोछ डाले क्योंकि उसे कुछ शराश्च हो गई थी, ब्ौर फिर इसके उपरान्त उसने कहा-- एक मास में ! ” वबृद्ध--ओर फिर इसके उपरान्त; मुझे आशा हे कि तुम अवश्यही इसे वच्ोगे चि्रकार--८ शीघ्रता से ) इच्छा तो एेष्ीदी है केवल इच्छाही नहीं वरन भगवान से ` प्रार्थना भी यदी है । बु्धा-तो -ला वड दूढा मुसीविर जो तुद्य.रे मकान से इद आगे, उस गली में रहता है, इसका कया मूल्य देगा १... ; ५ यहं सुनके युवक ने वड्ही आश्चयं म पृच्छा जि (|




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