षोडश भावना प्रवचन | Shodash Bhavana Pravachan

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Shodash Bhavana Pravachan  by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शीलत्रतानतिचार-३ ११ लाज नदीं छाती; किन्तु कामके साधक जो रंग हैं उनका नाम बोलनेमें ही लाज आती है। ऐसे इस शीलविरोधी पापके कारण कितनी बरवादी दो रही है, जब अधिक भासति हो जाती है तो कहते हैं लाज भी नहीं री एक एसी किम्वदं ती प्रसिद्ध है कि जो पुरुष) स्त्री इस कामक संगमे लाज- रदित होकर परषन्ति करते दै वे मरकर छततोका जन्म लेते है । कामस अग का नाम तेनेमे भी लाज आती दै, लिखनेमे मी लाज आती है और तो देखो श्नन्य विपयके साधनोंको छुपानेकी जरूरत नहीं पड़ती; छाखोंसे देखते हैं, सबके सामने देखनेसे कोई भयकी बात नहीं है । ६ रोको सुनते है। तो यो समभिये फि कामको साधना कितनी दोपपूणं चीज है ? इसको त्याग करके शीलकरा निरतिचार पालनेमे ज्ञानी पुरुपकी भावना रहती है । परमार्थं न्रह्मचर्य-- यह ज्ञानी निकट भग्यशीलके म्वंधमे निर्दोष पालनेकी भावना रख रा है । जो शीलवंत पुरुष हैँ उने इन्द्र मी नम- स्कार करते है । शीलवान्‌ प ही सम्यगज्ञान, सम्यग्दर्शनः सम्यकचारित्र शोभित होते है । जह्य नाम हे च्रात्माका व आत्मस्वभावका उसमे चलना, रमण॒ करना इसका नाम है ब्रह्मचर्यं । धा ब्रछपाधकता-- तरह चर्यंफे वाधक सभी पाप हैं, सभी कपाय है किन्तु उन ५ पापोमे छुशील नामका पाप ब्रहमचर्यंको पात्रना भी न रहने देने बाज्ञा एक विरोधीमाव दै । जैसे अन्य कषायोकि अन्य विपर्यो के भोगते हए भँ भारमाकी खवर कदाचित्‌ रद्‌ सकती है । भोजन कर रहे हैं तब छात्माकी विवेकीजन खबर रख सकते है, अन्य समयोमें भी खबर रख सकते हैं। कर्णोसे सुन रहे हैँ गीत संगीत, वदां मी इस आस्माकी ' खबर रख सकते हैं; कोई शाध्यात्मिक भजन हो; धार्मिक संगीत दो तो उसके 'माध्यमसे तो बहुत कुछ खबर रखी भी जाती हैं किन्तु ९पर्शनइन्द्रिय के विपये कामभोगमे तो इस मास्माकी खबर रहनेकी पात्रता नदीं हो पाती है। इस कारण शील शध्व्से शारीरिक व भाष्याप्मिक नद च्यक घातकी प्रसिद्धि है शरोर तस्सम्बंवी दुभीवनावोकी भसिद्धि है । शीलका महत्व-- शीलवान्‌ पुरुफको सव भाद्र ठते है । कोर शील करि सहितो नौर स रदिन दो, रोगन्रस्न हो तो भी बह अपने बाता- वरणे, अपने संसेसे समस्त पुरुपों रो मोदित करता है अ्रथौत्‌ शीलवान्‌ पुरुष पर सभी लोगोका आाऊर्पण रहता दै, शीलवान्‌ पुरुप सभीको सुखी बनाता है । शीलरदित अयौत्‌ व्यमिचारी कोई पुरुष कामदेव के तुल्य भी रूपवाद्‌ू दो तो भी लोकसे सब्र इसे घुनकारा करते हैं। जो कामी पुरुप ` है, घमंसे चतित दो जाता है; छात्माक स्वभावसे विचलित हो जाता है;




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