ढूंढक ह्रदय नेत्रांजनं | Dhundhak Hridaya Netranjanam
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ददौ नीके-कि्नेक, अषूर्ववाक्य. ८ १७ )`
हे दंडनीनी ? इसमे भी ख्या करना कि-मव तूने-जेनध-
भके तश्वसि-बिपरीत ेखको शिखा, तव ही जैनधर्मतं विरोध
रखनेवाछे-ते पंडितरनि, तेरी भसंसा कई ? इस वातसे तूने श्या
जंडा छगाया ? । पाठकगण ! इस जाहीरातमें-दूंढनीजीने-प्रथम
यहं किला है कि-सूत्रपमाण, कथा, उदाहरण, युक्ति आदिं,
हस्तामरूक करानेपें-झुछ भी वाकी नहीं छोडी ।
इसमें इतनाद्दी विचार आता हें कि-आजतक जो जो -जेन
धर्मके-धुरंधर महापुरषां हो गये सो तो-सून्रादिक भाति दस्ता-
मरक फरानेमे सव इछ वाकी री छोड गये हे । केवरु-साक्षात्पणे
पवैत तनयाका खरूपको धारण करके-इस दहर्नानीने दी-ङ्छ भी
वाकी नहीं छोडा है ? 1 हमको तो यही आथरयै होता है कि, इस
दृढनीजीको-जूढा गर्ने, कितनी वे मान वनादी है १।
क्यौकि दंढनीजौनि- नेन वर्भके त्की व्यवस्याका नियमानु-
सार-एक भी वात, नहीं छिखी हे । तो भी यर्व कितना किया है?
सो इमारा छेखकी साथ विचार करनेंसे-पाठक वर्गको भी-माछूम:
हो जायगा 1 |
ओर हम भी उस विषयक तरफ 'वेखतो वखत पाठक वर्गका
किंचिद् मात्र ध्यान खेचेगे। ओर ठंढनीनीकी इयुक्तियाको, तोड-
नके सिवाय, नतो अशुद्धियांकी तरफ लक दिया है । ओर नतों
पाठईंवर करके-वां चनेवाछेको कंटाला उत्पन्न करनेका. विचार
किया हे । केव् श्री अनुयोग दवार सूतके बचनादु्ार-चार नि-
जेपका, यत् किंचित् स्वरूपको दी-समजानेशा विचार किया है ।
सो चार करनेवङे-मव्य पुरुषाको, हमारा यही कहना हे कि-
आजकाकके नवीन पंथीयोंकि विपरीत बचनपर आग्रह नहीं करके;
User Reviews
No Reviews | Add Yours...