रोटी का सवाल | Roti Ka Sawal

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Roti Ka Sawal by गोपीकृष्ण विजयवर्गीय - Gopikrishn Vijayvargiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ .९ | - रस पुस्तक में मैंने इन्दीं विचारों को निश्चित रूप में प्रकट करने का अयत्न किया द । इसे लिखे हुए कई वपं गुज्ञर गये हैं । उनका सिंदावलोकन करने पर मैं अन्तःकरण पूरथंक कह सक्ता ह कि इसके प्रधान विचार सही थे । रान- कीय साम्यवाद कै प्रचार की सचसुच काफी भरगति इ है । राज्य की रेछें' राज्य के वेह्.ओौर राज्य का मादक' पदार्थ व्यवसाय यत्रन्तन्न स्थापित हो गये हैं। किन्तु सददामें प्रत्येक कम पर, चाहे उससे चस्तु विशेष सस्ती हुई हो, मजदूरों के अपने उद्धार के सार्ग में नहें बाघा उपस्थित डुए बिना नहीं रही । यही कारण है कि आज मजुदूरों में, विशेषतः पश्चिमी यूरोप मे यह विचार द्द्‌ शता पाया नाता है कि रेलों जैसी मंविदाऊ राष्ट्रीय सम्पत्ति का कार्य संचाठन भी राज्य-संस्थाकी अपेक्षा रेखवे -मजूदूरों के सम्मिछिव-संघ द्वारा भच्छे ढंग से दो सकता है । दूसरी भोर इम देखते हैं कि यूरोप भर अमेरिका भर में ऐसे असंख्य उद्योग हुए है जिनका सुख्य हेतु एक तरफ तो यदद है कि उत्पत्ति के बढ़े-बढ़े विभाग स्वयं मजुदरों के हार्थों में आजायें, और दसरी तरफ़ यह कि नगर-वासियों के दवित के जितने काये नयर द्वारा किये जाते हैं उनका शचेत्र सद्‌ा भधिक्राधिक्‌ विस्तीणं होता चरा जाय । एक तो, धमनीवी संघों की यह भ्रषृति वदती जा रही है कि भिन्न-मिन्न व्यवसायों का -संगढन अन्तरौषटरीय द्टि-कोण से किया जाय, जोर उनको केवर मजदूरों की दक्षा सुधारने के साधन ही न बनाये जार्यै, प्रत्युत उन्दँ एसे संगठन का रूप दिया जाय जो समय अने पर पने हार्थो में उत्पत्ति की न्यः चस्था भी ले सकें। दूसरे,सदयोग उत्पत्ति और विभाजन में और उद्योग भौर कृषि में, दोनों, दिशाओं में ही सदयोग वद्‌ रहा है भोर आज़मायशी -चस्तियों में ढोनों प्रकार के सहयोगों को मिलाकर दिखाने की कोशिश ची जारी है । तीसरे, नागरिक समाजवाद छा अनेक विभिन्नता्नो से




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