आनन्द प्रवचन भाग - 5 | Anand Pravachan Bhag - 5

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Anand Pravachan Bhag - 5  by प्रवर श्री आनन्द ऋषि जी - Pravar Shri Aanand Rishi Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनः ृष््टिपूत न्यसेत्‌ पादम्‌ डर यहाँ आप विचार करेंगे कि नरक तथा तियंच गति मे न सही पर देवगति मे तो जीव चाहे जो कुछ कर सकता होगा, क्योकि मनुष्य भी तो स्वर्ग पाने की अभिलापा रखते हैं । आपका यहं विचार करना अनुचित नही है । नरक ओर तिर्य॑च गति की अपेक्षा देवगति श्रे ष्ठ है । वहां मृत्युलोक की उपेक्षा जीव अधिक सुख प्राप्त करता है तथा भोगोपमोगो मे निमग्न रहता है । किन्तु वह सव उसे अपनी आयु के समाप्त होने तक ही प्राप्त रहते हैं । अपने ज्ञान के द्वारा जत्र वह जान लेता है कि मेरी आयु सपूर्ण होने को है तो वह वहुत आरतंघ्यान करता है तथा कर्मो का बधन करके वहां से निकलकर पुन दुख भोगने और जन्म-मरण करने लगता है । इसके अलावा वहाँ पर जीव जितने काल तक रहता है, केवल पुण्य कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त भोगो को भोगने मे ही इतना लीन रहता है कि आत्मा को कमं-मुक्त करने का कोई प्रयत्न नहीं करता । स्वर्ग मे रहकर मात्म-कत्याण के लिये कुछ भी त्याग अथवा साधना नहीं की जा सकती इसीलिये कवि ने मनुष्य-जन्म को ही सबसे बडा लौर ऐसा नगर बताया है, जहाँ पर जीव धर्माराधन का चडे से बढा व्यापार करके उसके फलस्वरूम मोक्ष रूपी नफा भी हासिल कर सकता है । “रेट्स्यानाग सूत्र मे कहा गया है कि देवता भी तीन चातो के लिये लालायित रहते हैं-- तभो णाइ देवे पीहेज्जा माणुस भव, मारिए खेत्त सम्स, सुकुलपच्चायाति । देवता भी तीन चीजों की इच्छा करते हैं--मनुष्प जीवन, शायेक्षेत्र मे जन्म ओर श्रेष्ठ कुल की प्राप्ति । एेसा षयो ? इसलिये कि जीव सानव-पयय पाकर ही त्याग, नियम, प्रत्या- स्यान, तपस्या एव सयम साघना कर सकता है । भमौर किसी भी गति या किसी भी योनि मे यह सभव नही है । तो देवता भी जब मानव जन्म पाने के लिये व्याकुल रहते हें तो क्यो नहीं इस जन्म को सर्वश्रेष्ठ मौर कवि के एन्दो मे सवसे चडा शहर कहाजयेगा 1 यही वह्‌ स्थान है जहां से मनुष्व निकृष्ट कमं करके मघोगत्ति मे जा मक्ता है और श्रेष्ठ कर्म करके सदा के लिये ससार-मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकता है ।




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