आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी व्यक्ति और साहित्य | Acharya Nandadulare Vajapeyee Aur Sahity
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
498
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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आगराकचन्
-आचायं वाब्रु श्थामसुन्दरदास् डी° लिट्०
नन्ददुलारे वाजपेयी का अन्म भाद्रपद प्ण १५, स० १९६३ को उन्नाव
जिले के मगरायल ग्राम में श्रेप्ठ वान्यकुब्ज ब्राह्मण-कुल में हुआ था । इनके पिता,
पहले खेतडी (राजपूताना) म हिन्दी के अध्यापक थे । वहाँ से वे कलकत्ता गए और
वहाँ की पिंजरापोल नामक गोशाला में मंतेजर नियुक्त हुए । यह एक बहुत बड़ी
गोशाछा टै, जिसमे हजारो कौ सख्या मे गाये रहती रह । उसकी एक शाखा विहार
प्रात के हजारीबाग जिले में भी है । कुछ दिन बाद इनके पिता कलकत्ता से हनारी-
बाग गोशाला के प्रबंधक नियुक्त होकर चले. गए । यहाँ का प्राकृतिक दुश्य बडा
मनोरम है, यही इनका आरम्मिक जीवन व्यतीत हुआ 1 जन्म के डेढ़, वर्ष वश्द हो
इनकी माता का देहान्त हो गया था ।
इनकी शिक्षा घर ही पर हिन्दी से आरम्भ हुई। अंग्रेजी की आरम्भिव
पुस्तकों भी घर ही पर पढ़ी । सातं वर्ष वी अवस्था मे वही के मिशन काल़ेजिएट
स्कूछ में भर्नी किए गए । ये अपनी कक्षा के सबसे छोटे विद्यार्थी थे । उस स्वूल से
इन्होंने सन् १९२० में एट्रंस की परीक्षा पास को और फिर सायस छेकर् एफ० ए०
मे पढ़ने लगे । क्त इस विषय की ओर् रचि न होने से दूसरे वं सायस के स्थान
पर आटे स लेकर पटना आरम्भ किया । सन् १९२४५ में इन्होने एफ० ए० पास
किया । उसके अनतरर ये करी विश्वविद्यालय से प्रटने के लिए आए ! यहाँ सन्
(९२७ में वो० ए० और १९२९ मे हिन्दी लेकर एम० ए० पास क्या । वी० ए०
मे ये विश्वविद्यालय के प्रमुख छात्रों मे थे और एम० ए० में अपनी श्रेणी के विद्या
थियों में इनका प्रथम स्थानथधा। १९२९ से ३० तक ये “मध्यकालीन हिन्दी-
काव्य”. में अनुसन्धान वायें करते रहे ।
हिन्दी कौ ओर इनकी रुचि स्कूल से ही थी । हजारीवाग में शुद्ध हिंद
बोलने वालो कौ सस्या वहुव कम थौ 1 विद्याथियो को भी शुद्ध हिन्दो-खिखना या
मोलना नही आना था । स्वूल के प्रधान अध्यापक, जो त्रिद्वियन ये, देदरी-निवासी
होने वे कारण युद्ध हिन्दी बोल लेते थे । उन्होंने इन्हे प्रोत्साहित क्या । छोटे-छोटे
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