वैचारिकी नई आलोचना | Vaichariki Nai Aalochana

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Vaichariki Nai Aalochana by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शई आलोचना १७ हुई कि उन्होनि मुह पर फषडा बांध लिया मौर असलो नाम का श्र लेकर नक्लो जान भरजञाचक्ु रख कर ही साहित्य के भेदान में कदम रख सके 1“ { ण्ह , मई, १६५१ } उपयुक्व आरोप का उत्तर दिया डं० रागेय राघव ने 1 सपनी पुस्तक श्रग्ति्नील साहित्य वे मानदण्ड में उन्होंने लिखा “तो ह्‌ पता चला कि डावटर साहब के तकं के अनुसर जव कोई नाम यदलशर लिखता हैं वो वह डरता ह? तव रामदिलात जो जब सिया वेताल, निरजन, अशोक आदि नामों से लिखते थे तद वे डरते थे । या तो डाक्टर साहब रो अपनी नौकरी का डर रहा होगा या उन्हें बसे साहित्य को स्वीकार करने में केप होगे । जव वे घासतेटो साहित्य को, पार्टी दस्तावेजों को छम्दवद्ध करके रख रहे ये ओर उतते जनवादों कला का दम धोट रहे ये तद शायद उन्दं अपने डाक्टर जते भारो-भरकम साम के बदनाम होने का डर था, श्योकि खडोबोलो को बहु कविताएं जो धुनिर्‌ प्रचित रोतमैमे क्तिएी गहै उन पर उनका डाक्टर दोभित हं ॥ षस धकार के सक्डो उदाहरण दिये जा सक्ते है जिनमें आहत क्षोम, दुराग्रह, अविश मौर घृणोत्मादक दलीलो वा प्रश्रय च्वि गयाहै। एक ही विचार धारा भौर सम सिद्धान्तो के सम्मानित छेखको में इस तरद के विवेक्टीन तकं भोर कटूक्तियाँ पेदा की जा रही हे कि जिससे सवी्ण विचारवृनमें ही सिमटकर म्रगतिवादी समीक्षा सबंधा एकागी और विष्वसक होती जा रही है। और भी कितनी ही खामियाँ हे जिन्हें नजरन्दाज नहीं किया जा सकता-- १ रूसो मान्यतायो को लेकर चलने के कारण प्रगतिवाद झपनी भारतीय जीवन-व्यवस्था मे पूर्णेरपेण गृहीत न हो सका, पर इसके समर्थकों ने इसके सामान्य गुणों के लुम्बेलम्दं भाप्य वर हमारे देशकाल की विशिप्ट परिस्थितियों पर इसे भ्रवरस्ती थोपने का प्रयास किया है। २ प्रत्येव कलाकार अपनेयुगसे सदेव आगे होता है। उसकी प्रतिभा निर्माणोन्मुख और मघपों को चीरती हुई सहज गतिशील होनी है, फिर सगत- समगत तकर दवारा भ्राचीनो करा मून्य घटाना अयवा तात्तालिक परिस्थितियों की जवहेटना कर उनके कृतित्व वौ किसी खाम पमाने से नापजोख करना सर्वथा बद्ामनोय है । ३ “शाश्वतः जौर चिरन्तनः से चिढने वाले नासमज्ञो हारा प्राचोन श्रेष्ठ साहित्य तक को आय के उयडे, दिशाहीन साहित्य की तुलना में घटिया सिद्ध करना या उन्हें पृथक करने वाटा विभाजक रेखाएं खोचना ( क्योक्रि उसे उनका अभीष्ट या लिरिष्ट मान्यता नही है } अपनी प्राथवान साहित्यिक पूजो को बिल्कुल चौपट करना है।




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