सम्पूर्ण गांधी वाड्मय भाग - 1 | Sampurn Gandhi Wadmay Bhag - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
63 MB
कुल पष्ठ :
420
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अठारह
प्रमाण थी मौजूद है। उसपर गांधीजीने नहीं, दूसरोंने हस्ताक्षर किये हैं, परन्तु
गांधीजीने अपनी ' आत्मकथा ' (गुजराती, १९५२, पृष्ठ १४२) में कहा है: “इस
प्रार्थनापत्रके पीछे मैंने बहुत मेहनत उठाई। इस विषयका जो-जो साहित्य मेरे हाथ
छगा वह सब मेंने पढ़ डाला ।
यद्यपि गांधीजी १८९४ से कुछ वर्षोतक नेंटालमें रहे थे, फिर भी दक्षिण
आफ़रिकी गणराज्यसे, जिसे बादमें ट्रा्सवाल कहा जाने लगा, भेजें गये कुछ प्रार्थनापत्र
भी इस खण्डमें दामिरू कर दिये गये हैं। इन्हें गांधीजीके लिखें हुए माननेका कारण
यह है कि उन्होंने अपने दक्षिण आफ्रिकावासका पहला वर्ष --अर्थात् १८९३ और
१८९४ का कुछ-कुछ भाग -- ट्रा्सवालकी राजधानी प्रिटोरियामें बिताया था और उन्हें
वहाँके भारतीयों तथा उनकी समस्याओंका अच्छा परिचय हो गया था । उन्होंने अपनी
ˆ आत्मकथा ' (गृजराती, १९५२, पृष्ठ १२६) में लिखा है: “ अब प्रिटोरियामें शायद
ही कोई भारतीय ऐसा रहा होगा, जिसे मैं जानता न होऊँ, या जिसकी परिस्थितिसे
में परिचित न होऊँ। ” उन्होंने यह भी कहा है (आत्मकथा, गुजराती, पृष्ठ १२७) :
“मेने सुझाया कि एक मण्डल स्थापित करके भारतीथोंके कष्टोंका इलाज अधिकारियोंसे
मिलकर, अर्जी आदि देकर करना चाहिए; और यह वादा भी किया कि मुझे
जितना समय मिलेगा उतना बिना किसी वेतनके इस कार्यके लिए दूँगा। ” इसलिए,
यद्यपि गांधीजी इसके बाद नेटालमें रहे फिर भी बिलकुल सम्भव है कि ट्रान्सवालके
भारतीयोंने अपने प्रार्थनापत्र उनसे ही लिखवाये हों । वे नेटालमें रहे हों या ट्रा्सवाल-
में, सारे दक्षिण आफ़िकाके भारतीयोंकी समस्याओंमें उनकी गहरी दिलचस्पी थी;
और उन्होने ऑरेंज फ्री स्टेट तथा केप प्रदेश जैसे दूसरे हिस्सोंके और, यहाँतक कि
रोडेशियाके भी भारतीयोंकी समस्याओंके बारेमें लगातार लिखा है, हालाँकि वे इन
प्रदेशोंमें रहे कभी नहीं ।
तथापि, यह कह देना जरूरी है किं भारतीयोके भेजे सभी प्राथनापत्र गांधीजीके
लिखे हुए नहीं हैं। कुछ प्रार्थनापत्र तो वे गांधीजीके दक्षिण आफ़रिका पहुँचनेके पहले
ही मेज चुके थे) स्पष्ट है कि ये प्राथनापत्र यूरोपीय वकीलोंने पेशेके तौरपर उनके
लिए लिख दिये होंगे। ऐसा होते हुए भी, बिलकुल सम्भव है कि जैसे ही गांधीजी
उनकी समस्याओंमें गहरी दिलचस्पीके साथ रंगभूसिपर आये वैसे ही भारतीयोंने अपने
सारे प्राथनापत्र उनसे ही लिखवाने शुरू कर दिये हों । श्री हेनरी एस० एल० पोलक
और श्री छगनलाल गांधीका भी यही मत है। ये दोनों महानुमाव सन् १९०४ के
आसपाससे दक्षिण आफ़िकामें रहकर गांधीजीके साथ काम करते थे। जितने दिन
गांधीजी वहाँ रहे, ये भी उनके साथ ही थे।
दो कागजात और भी हैं, जिन्हें गांधीजीके हस्ताक्षर न होनेपर भी इस खण्डमें
शामिल कर दिया गया है। वे हैं--नेटाल भारतीय कांग्रेसका संविधान और उसकी
पहली कार्यवाही । नेंटाल भारतीय कांग्रेसकी स्थापना गांधीजीने ही की थी और वे
उसके पहले मन्त्री थे। उसके संविधानका मसविदा गांधीजीके ही हस्ताक्षरोंमें लिखा
_ प्राप्त हुआ है ।
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