कविता कुञ्ज | Kavita Kunj
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
55
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गणेश प्रसाद सिंह - Ganesh Prasad Singh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थे कवि का आतलनाद
टी हई इवास श्धतक की, तन म फिर कया आं सकी ?
उनके प्रति की गद वान क्या, तनं मे जोह अमा सकती ?
मरने पर शीतल कर्णल्द्रिय, पुनः काथं कया दे सकती १
करके श्रवण चापल्ुसी भी, भला रन्ति क्या ले सकती ?
शायद इस जन-त्यक्त भूमि पर, कुछ झट, बीर-हृदय वारे ।
गड हुए होंगे इस थछ पर, तत्व-उयोति रखनेवाले ॥
अथदा वे भी सोप होंगे, कर राज काज़ जो सकते थे।
था उनमें के कई व्यक्ति जो, गायक, कवि दो सकते थे ॥
हेतु न यश बढ़ने का उनका, अवसर की न इ अनुरति 1
स्वाभाविक जो भरी हुई थी, अन्तरात्मा में वह दाक्ति ॥
विकसित नहीं कभी दो पाई, कारण ? पक दीनता थी ।
इसी हेतु प्रस्फुटित डुई नहि, प्ररति-दत्त जो गुख्ता थी ॥
नील, अगाध जंरखुधि अन्वगत, अति गम्भीर शुफा के वीच ।
विभरू कान्ति मय मणी अनेका, पडे इप रहते भिर कीच ॥
छेकर जन्म अर्य पुष्य अति, केलति है मरु परः गन्ध ।
खिल करके सुरद्यति है सव, करती मास्त नष्ट सुगन्ध ॥
कृषक दुखद कानूम विलाशक, 'देम्पडेन' बन सकते थे |
गमि चञ्चु सम पड़ अभासे, 'मिव्टन' कवि हो सकते थे ॥
'कॉमवेल' से बीर युद्ध-प्रिथ, इन में से दो सकते थे।
व्यथं जरी बे रक्त बहति, देदा-दुःल खो सकते थे
राज-लीति परिषद् मे भी वे, उत्तम मान खदा पाते।
नहीं विनाश, कष्ट पाने की, कुछ भी वे परा करते ।
उनका भी इतिंदास जाति फी, ओखां म होता अदं ।
निज कर्तव्य पाठते वे सब, करते अधिक देश-उत्कष ॥
केवल उर्नकी किस्मत दी ने, उनके सद्युण कुचल दिए ।
साथ साथ हीं गोण सारे, उनके चकना चूर किए ॥
६
User Reviews
No Reviews | Add Yours...