वीरायन | Veerayan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
374
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१९.
के चिना जीवन भ्रज्ञान में भटकता है! वास्तविक यथाथं शाश्वत सुख है । अभंगुर
श्रानन्द है। यथार्थं का श्रादशं में एकाकार व्यष्टि का समण्टिकरण है। यथाथंका
ग्रथं जीवन को नीचे गिराकर दीन-हीन दशा को पहंचाना नहीं है, यथाथं का ग्रथ
जीवन को वास्तविक ज्ञान देना है। जो काव्य जीवन को, मन को व्यष्टि श्रौर
समष्टि का मागं देता है, उसका महत्त्व श्रमर है। जिस काव्य का अ्रस्तित्व समय के
साथ समाप्त हो जाता है वह बाढ़ में उठने वाली लहर की तरह है। जिस काव्य
की गति कलनाद करने वाली गंगा धारा की तरह जीवन रौर जगत को प्लावित
करती है वह् शिव के सिर चदु रहती है! काव्य का उहेए्य शिव होना चाहिए ।
शिव ने विष पिया अमृत दिया। कवि भी जहर पीता है सुधा देता है।
दुःखों का गरलपान करता हुश्रा कवि रवि की तरह तपता है। कवि भ्रनुभूतियों
से उत्पन्न प्रेरक प्राणी है! कवि दुःख ्रौर सुख की भ्रनुभूतियों का निष्कषं है । कवि
सहता है वहुत सहता है ! भ्रभावों में जीता है! कवि के भावों में अभावों के दीपक
जलते रहते हैं। कवि की रचना में ग्राँसुग्रों का अमृत हिलोरें लेता है। कवि
भक्ति शर शक्ति का प्यासा गायक है ।
संसार में संघर्पो का अन्त नहीं, यहाँ संघर्पों में ही सुख श्रौर शान्ति है। जब
से दुनिया शुरू हुई है तब से ही पहले संघर्ष शुरू हुए। संघर्षों से पलायन करने
वाला दुखी होता है। संघर्षो में शान्ति मानने वाला सुखी रहता है। कवि संघर्पों
का मोहग्रस्त 'भ्र्जुन' है। वह श्रपनों पर वाण नहीं चला सकता। कवि को
कृष्ण भगवान' उपदेश देने का कष्ट कहां उठते हँ । कवि को तो भगवान की
प्रोर वाण पर बाण खाने की आज्ञा होती है। कवि व्यण्टि जगत में अपने और
परायों के तीर सह सकता है, तीर चला नहीं सकता। कवि श्रहिसा की जलती
हुई मोमबत्ती है। श्रपरिग्रह या तो शिवस्वरूप दिगम्बर मुनि के लिये है या
्रभावग्रस्त कवि के लिये है। कवि झ्रस्तेय श्रौर पवित्नता का प्रतीक है । कवि समन्वय
में विश्वास रखता है। शाश्वत सत्यों में कवि की झ्ास्था होती है। पुर्ण कवि
केवल ज्ञान है। दोपरहित काव्य ज्ञान का श्राराधन है।
केवल ज्ञान को प्राप्त भगवान् महावीर पर काव्य रचने की प्रेरणा मुभे उनके
ज्ञान तत्वों से मिली । भगवान के निर्वाण महोत्सव के अवसर पर प्रभु की पूजा के
रूप में मैंने यह श्रनुष्ठान शुरू किया । तीन वषं हो गये मुके इसी धुन में लगे ।
मेरी साधना में महामुनि 'वि्यानन्द' जी महारज का वड़ा योग है 1 वद्धंमान भगवान्
के गुण गाने के लिए मुझे मुनि जी का श्राशातीत सत्संग मिला । मैं प्राय: प्रतिदिन
उनके चरणो मे स्थान पाता रहा । एकान्त मे वरावर उनसे सत्संग करता रहा ।
जय भी जिसको जो कुछ मिला है सब सत्संग से मिला है। सत्संग ज्ञान का मूल
मन्त्र है। सत्संग के यिना बिवेक नहीं होता । मुनि महाराज ने वड़े प्रेम से पथ-
प्रदशंन किया । ज्ञान के दीपक दिये। रास्ते दिखाये। मैं उनका आभारी हूँ ।
मुनिधी जी के ्राशीर्वाद से वीर निर्वाण भारती ने 'वीरायन' के प्रकाशन में
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