शैवमनोरंजनी (भाग- 1,2,3,4) | Shaiv Manoranjani (1,2,3,4 Part)

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Shaiv Manoranjani (1,2,3,4 Part) by श्री वाजपेयी देवीसहाय - Shri Vajpeyi Devisahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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त ॥ प्रथम भाग । १५ 1 लाकवनी ॥ वाराणसी वसावों श्र, वाराणसी बसा- सौरे । वहुत दिननसे झास लगी है अव क्या देर लगावो रे ॥ मणीकर्णिका घाट के ऊपर गढ़ नित्य नहाँवों रे । तारकेश्वर पूजन करिके टु दिशज पर जावों रे ॥ मैरोनाथपरी के मालिक तिनके दरसन पावों रे । अन्नपूरणा परन करिंदे चरन सरन चित लावों रे । विश्वनाथ पद पूजन करकं सभा जाय जस भोरे । ज्ञान बाउरी करं आचमन आवागमन मिटर्षोरे ॥ दीन व॑ यह नाम तजो नहि नयनरोग नसां २। देविसहाय पुकारत आस्त गिरना ठम समुफामोरे ॥ ९४॥ १ दो०-रहे चर्पघर झाधघ जव, शुभ मति देवि सहाय । भजन कद्यो यह प्रेम सो, तन सन सक्रल् लगाय॥ १॥ द्धैन चचन छनि शंथु स, क्यो गौरि शङलाय । दीजिय इग निज दास को, नाथ दिये हर्लाय ॥ २॥, य॒द्‌ घुनि दीन शयालु दर, दई पूं समदीटि। लह मक्त दित भापदी गिरिजा मई बसोडि ॥ ३ ॥'




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