सुर : एक अध्ययन | Sur Ek Adhyyan

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Sur Ek Adhyyan by शिखरचन्द - Shikharhand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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को देय ने बोहर करने के लिये हुए । फिर नी थे अपनी मॉथों के सामने अपने पमं का--जिम दहिन्दर-जासि वपा प्रत्येयः जातिप्राणोंने प्यारा समभनी हैं -भपनी पुर्य मूमियों का भपमोन देखते थे तो उन्दें भवने जवर पटी ष्टि दौनी यी । ममे नेरा्य-पू्णं एवं आत्म विस्मृतिं यो समय कबीर लादि महात्माओं ने निर्गण भक्ति का संदेश भारत को देकर भारत का वड़ा उपकार किया हैं। यह सत्य है, कि निर्गुण त्रदं टंद्रियानीत हैं, पर उसका अस्तिता मानना ही मुर्दा जाति को जीवनदान दान देना था । कबीर में बड़ी उच्चबोटि की प्रतिमा थी, यद्यपि थे पढ़े लिखें न थे । उनमें उच्लकोटि की लगन, जाति-हित प्रेरणा, सानिव-प्राणी मात्र की भलाई की कामना थी, चाहे उनके शब्दो फे ओज एवं तीप्रत्ता में हमें कुछ ष्टुना भरे । वे वेद उपनिपद्ध नहीं पड़े सकते थे। वे चेदांगों में पारंगत विद्वान नहीं थे । उन्होंने सांख्य-सी मांसा के ग्रंथ नहीं पढ़े थे, किस्तु उनके तत्वों एव सिद्धांतों से वे अनभिज्ञ नहीं थे । उन्होंने चढ़े चदे विदानो, माधू-महार्माओं का संगं किया था । वे वहुश्ुत थे । सत्य ही उनका व्यवसाय था । सुकार्प ही उनका भोजन था ।कचीर ने हिन्दू मुसलमानों दोनों के ही दोपों का उद्घाटन किया हैं |, उन्होंने रचना- त्मक नहीं, प्रत्युत सदनात्मक मार्ग ग्रहण किया. ध्रा | रचनात्बक कांये नो आगे जाकर सुफी कवियों जायसी, सुर और तुलसी द्वारा होने वाला था गौर हुआ | प्रारंभ में संडनात्मक कार्य ही नुरू किया जाता है । जव टेम फ्रिमी पुरानी इमारत के स्यान पर कोई नवीन भवन कह निर्माण करते, तवर हमे पटे उम पृरानी इमारत को नष्ट करना ही इत्ता हूं । कबीर के पह़िल़े हिन्टू-समाज का भवन जो हजारों वर्ष का पुरोना हो गया था, चह समय-समय पर कृ स्तम्भ लगा; कुछ नल्लियों लगा, सुधारकर या कई प्रकार के टेयो लगाकर रहने योग्य बना लिया गयी ध्रा 1 हिन्दू-तमाज की देखा उस समय भिखारी की गुदड़ी के




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