मानव प्रवृत्तियों के निर्माण की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि | Manav Pravrittiyon Ke Nirman Ki Vaigyanik Prishthbhumi
श्रेणी : मनोवैज्ञानिक / Psychological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
550
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भी ध्यान दिया है | ऐसा नहीं किया गया £ै कि प्रादर्शयाद मे एकम द्रमः;
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वैज्ञानिक क्रम उपस्थित करके प्रबंध को रचा का सघन प्रगत वमिप ~ |
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--वस्तु-परिचयः-मेरे परयंध का मूल देष भा साहित्य में
वादों का स्थान | परन्तु साहित्य की परिमापा स्थिर किये चिना यादों नहा प
चय देकर उनका स्थान नियाय करना 'श्रसंगत था | इश्क लिप् दध
कि मैं साहित्य को एक स्वीकृत पर्मिापा देकर श्रयवा श्रपनी परिभाषा चनक्र
श्रागे चलता । परन्तु इत प्रकार पक्षपात के दोप स वचा न्ट डा म्कना श्य्]
इसीलिए साहित्य को विभिन्न मान्यत्ताएँ उपस्थित्त करना भी स्याचश्यक
इस प्रयाप्त का परिंशाम यह हुश्मा हैं कि हिन्दी साहित्य में संभ
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भारतीय शास्त्र-परंपरा के श्रनुसार “साहित्य शब्द की पूरी परिभाषा दो गई रै |
यथासाध्य पश्चिम के विद्वानों की परिभाषाश्ों से भी उन मान्यता का समन्त
करने का प्रयत्न मैंने किया हैं ।
वाद विशेप का परिचय देते समय भी दो नवीन दृष्टिकिण उपस्थित
किये गये हैं--पहंला कवि के साथ श्रंतरंग त्रूत्ति से तादात्म्य स्थापित करना श्र
दूसरा कवि से तथ्स्थ रहकर साक्षी-रूप में उपस्थित रहना |
चेष्टा कौ दे कि.निष्पक्त होकर श्रपना मत भो प्रकर करूँ |
थ्यांन रक्खा है कि मैं निर्णायक नहीं हूँ,
तफल मेरा ही सत तवेमान्य दो जाय,
प्रतर्मे मने यद्
इतना मेने सेव
में तो एक दृश्य का द्रप्टामातर हूँ।
ऐसा हठ मैंने कहीं नहीं किया हैं |
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