धर्मवर्द्धन ग्रंथावली | Dharmvardhan Granthavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
480
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३ )
श्री अगर चंद नाहटा ने अपने “राजस्थानी साहित्य और
संन कवि धर्मवद्धन' शीपंक लेख ( व्र॑मासिक राजस्थान;
भाद्रपद १६६३ ) में उपाध्याय धर्मंचर््धन के जीवनवृत्तान्त
पर अच्छा प्रकाश डाढछा हे। तदनुसार इनका जन्म
स० १७८० मे हुआ था और इनका जन्म नाम “घरमसी'
( घर्मर्सिह ) था इन्दोने तत्काछीन खरतरगच्छाचायं
श्रीजिनग्त्नसूरि के पास स^ १५१३ म तेरह वपं की अल्पायु
में ही दीक्षा ग्रहण की और इनका दीक्षा नाम “घर्मचद्धन'
हुआ । पद्रहवींशताब्दी के प्रभावक् खरतर गच्छाचार्य
श्रीजिनभद्रसूरि की शिष्य-परस्पगा के मुनि विजयहपं आप
के विागुर् थे, जिनके समीप रह् कर आपने अनेक शास्त्रों
का अध्ययन किया |
मुनि घ्मचद्धन का समस्त जीवन धमंप्रचार एवं अन्थ-
रचना में ही व्यतीत हुआ । आपने अनेक प्रदेशों, नगरों
एवं श्रामो में विहार करके धर्मं-प्रचार किया और प्रचुर
साहित्य-रचना की । आपको अपने जीवन मे बडा सम्मान
आप्त हुआ । आपकी विद्वत्ता की अ्रसिद्धि फेढी । फठतः
गच्छनायक् श्रीजिनचन्द्रसूरि ने आपको स० १७४० में
उपाध्याय पद से अछकृत किया । आगे चछ कर गच्छ के
-तक्काखीन सभी उपाध्यायो मे वयोवृद्ध एव ज्ञानवृद्ध होने के
कारण आप महोपाध्याय पद् से विभूधित हुए ।
खट भग ८० वपं की आयु में यशस्वी एव दीवंजीवन प्रात्र
करके मुनि धमंवद्ध॑न ने इहटीला सवरण की । जयसुन्डर,
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