धर्मवर्द्धन ग्रंथावली | Dharmvardhan Granthavali

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Dhramvardhan Granthavali by अगरचन्द्र नाहटा - Agarchandra Nahta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) श्री अगर चंद नाहटा ने अपने “राजस्थानी साहित्य और संन कवि धर्मवद्धन' शीपंक लेख ( व्र॑मासिक राजस्थान; भाद्रपद १६६३ ) में उपाध्याय धर्मंचर््धन के जीवनवृत्तान्त पर अच्छा प्रकाश डाढछा हे। तदनुसार इनका जन्म स० १७८० मे हुआ था और इनका जन्म नाम “घरमसी' ( घर्मर्सिह ) था इन्दोने तत्काछीन खरतरगच्छाचायं श्रीजिनग्त्नसूरि के पास स^ १५१३ म तेरह वपं की अल्पायु में ही दीक्षा ग्रहण की और इनका दीक्षा नाम “घर्मचद्धन' हुआ । पद्रहवींशताब्दी के प्रभावक् खरतर गच्छाचार्य श्रीजिनभद्रसूरि की शिष्य-परस्पगा के मुनि विजयहपं आप के विागुर्‌ थे, जिनके समीप रह्‌ कर आपने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया | मुनि घ्मचद्धन का समस्त जीवन धमंप्रचार एवं अन्थ- रचना में ही व्यतीत हुआ । आपने अनेक प्रदेशों, नगरों एवं श्रामो में विहार करके धर्मं-प्रचार किया और प्रचुर साहित्य-रचना की । आपको अपने जीवन मे बडा सम्मान आप्त हुआ । आपकी विद्वत्ता की अ्रसिद्धि फेढी । फठतः गच्छनायक् श्रीजिनचन्द्रसूरि ने आपको स० १७४० में उपाध्याय पद से अछकृत किया । आगे चछ कर गच्छ के -तक्काखीन सभी उपाध्यायो मे वयोवृद्ध एव ज्ञानवृद्ध होने के कारण आप महोपाध्याय पद्‌ से विभूधित हुए । खट भग ८० वपं की आयु में यशस्वी एव दीवंजीवन प्रात्र करके मुनि धमंवद्ध॑न ने इहटीला सवरण की । जयसुन्डर,




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