सात दशकों की जीवन यात्रा | Saat Dashko Ki Jivan Yatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
516
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वरकरार थी। घर का काफी खर्च माँ उदय कुमारी उस रुपये से चलातीं, जो उन्हें
अपनी मां से मिलता था । परिवार में सम्भवत: अभाव की वजह से ही दादा मालोराम =
जी ने अपने छोटे लड़के सिरहमल को अजीमगंज के राजा विजय सिंह दुधौड़या को गोद
दे दिया था। संयोग से गोद लेने के बाद अजीमगंज के राजा को अपनी संतान हो गई।
उसके बाद सिरहमल उनके सराय नहीं रहै मौर वापस जयपुर भाग्ये! वे मजीमर्गज
भे वहत दिनों तके राज-परिवार के प्रदस्य की हैसियत से रहे ये, इसलिए जयपुर छने
पर भी उनकी भादतें खर्चीली थीं; जो परिवार की भा्थिक हालत देखते हुए लोगों में
अचरज पेदा करती थीं । बाद में उन्होंने जवाहरात का व्यवसाय शुरू किया । सिरहमल
से बड़े और इन्द्रचन्द्र से छोटे भाई सागरमल ने भी पहले से ही अपना व्यवसाय आरम्भ
कर दिया था । उन दोनों भाइयों की आर्थिक स्थिति सुधरती गयी । पर इन्द्रचन्द्र सिघी
के परिवार की दशा खराब ही रही, क्योंकि दोनों ही भाइयों ने अपना अलग-अलग घर
वसा लिया था भौर उनके इन्द्रचन्द्र से बहत सीमित सम्बन्धदहीये।
भवरमल सिघी के जीवन के पहले गम्भीर हादसे को स्मृतियां राजस्थान में
१९१८-१९ में फैली प्लेग को महामारी से जुड़ी हैं । इस महामारी की छाया ने राजस्थान
में जो तवाही मचाई, वह इतिहास का एक मलग अध्याय है । हजारों गरीब इस महामारी
के मुह में समा गये । भंवरमल सिघी के दादा; दादी गौर एक बरूमा उमराव देवी भी
इस सहामारी में एक-एक कर मारे गये थे । बचपन की यह रोंगटे खड़ा कर देनेवाली
घटना माज भी भेंवरमल को याद है । परिवार में शायद ये मौतें नहीं होतीं, अगर
पिद्धंडापन नहीं होता । डाक्टरों के पास जाने, उपचार कराने के बजाय परिवार में
तरह-तरह की मनौतियां मानों गई थीं । पर प्लेग की वीमारी मनीत्तियों से ठीक नहीं
हुई भौर घर के तीन सदस्य मर गये ।
वास्तव में गरीवी के जो दिन भंवरमल ने देखे, जो अपमान सहे, इसके बावजूद
जिस घने अंधेरे के वीच उन्होंने अपना रास्ता चूना और दृढ़ता से उस पर भागे बढ़ते
गये, बह हर उस भादमी को प्रेरणा दे सकता है, जो अपनी मजबूरियों से लड़ रहा है ।
शायद इसीलिए भँवरमल सिंघी के व्यक्तित्व का सुल्यांकन समाज के लिए उपयोगी चीज
है। भंवरमल सिंघी का महत्व इसलिए नहीं है कि वे समाज में उच्चादर्शों को कायम
करने के लिए जीवनपर्यत्त लड़ते रहे और आज समाज के एक सम्मानित सामाजिक
कार्यकर्ता ईह, बल्कि उनका महत्व इसलिए ज्यादा है कि इतने संकट के वीच रहते हृए
उन्होने सुविधाभों को ठोकर मारी मौर सूल्यों की शर्तें पर कोई समभ्रोता नहीं किया 1
उन्होंने समाज के लिये जो मानदण्ड माते उनका खुद पुरा पालन किया । भंवरमल सिघी
का व्यक्तित्व इसका जीवंत उदाहरण है कि अत्यन्त विपरीत परिस्थित्तियों में रहते हुए
भी किस तरह एक प्रतिभा ने हर ठोकर से दिशा पाई, संघपं को प्रेरणा ली ।
बचपन की कई घटनाएं सिंधी जी को आज भी याद हैं और उनका जिक्र करते
समय उनकी माँख में पानी भा जाता है। इनमें से कई घटनाएं उनके विद्यार्थी जीवन
की हूँ। बहुत कम लोगों को पता होगा कि भँवरमल सिंघो ने बचपन के वहुतेरे सुनहरे
तीन
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