हृदय की प्यास | Hirday Ki Pyaas

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Hirday Ki Pyaas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चोथा परिच्छेद चांदनी छिटक रही थी, और सुख-स्पर्श त्रायु वह रही थी | भगवती छत के ऊपर प्लैंग पर पड़ा था । छत पर छिड़काव हो रहा था, और बहू अपने हाथ का घुना हुआ तीलियों का पंखा लिए खड़ी हवा कर रही थी । इस एकांत में भी घूँघट उसके मुख पर पड़ा था। भगवती ने प्रेंम-भरी चितवन से अपनी नवोढ़ा स्त्री को देखते हुए कहा--“उपर का चाँद तो निकल आया है, नीचे का बादलों में ही छिपा रहेगा ?” बहू ने कुछ जवाव नहीं दिया । वह ज़रा सिकुड़कर उसी तरह पंखा भलती रही । भगवती ने देखा, उस बारीक के भीतर एक मंद मुस्कान छा गई है। उसने पंखे की पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। उसके साथ ही बहू के दाथ तौर फिर उसका शरीर भी भगवती के ऊपर झुक गया । भगवती ने पंखे की कालर छोड़कर एक हाथ से उसका दाथ,पकड़ लिया, और दूसरे से उसका धूँघट खोलने लगा । बहू ने लजाकर ।”” इसके बाद वह बल करके छिटककर अलग जा खड़ी हुई । भगवती इससे नाराज़ नहीं हुआ । उसने हूँसते-हूँसते उठकर कहा--“जाने : दो; इतना बिगड़ती क्यों हो ? दे




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