सार्थ प्रतिक्रमण सूत्र | Sarth Pratikraman Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साथ प्रतिकमण सून ७ 000 द्वारा वर्तमान काल में अशुभ योगों से निवृत्ति होती है षत यह्‌ वनमान काल का प्रतिक्रमण है. और प्रत्यास्यान द्वारा भावी अशुभ योगो की निवृत्ति होती है, अत यह भविष्यकालीन प्रतिकमण कहा जाता है । इस तरह प्रतिक्रमण द्वारा तीनों कालो में अदुभ योगी से निवृत्ति होती है । अत प्रतिनमण श्रिकाल के लिये होता है, एसा बहने में कोई बाधा नही है । विशेष काल की अपेक्षा प्रतिक्रमण कै निम्नः पाच मेद भी किये गये है-- ह (१) दवस्तिक- प्रतिदिन सायकात--मूर्यास्न के समय दिन भर के पापों, की आलोचना करना । (२) राप्रिक--राति के अत मे--प्रात काल के समय 'राधि के पापों की आलोचना करना । ,- ^ ८ (३) पलिक--महीने मे दो वार-पाक्षिफ पव के दिन--१५ दिन मे खगे हुए पापो-की आखोचना करना । ~ (४) ।चातु्मासिक--कातिकौ पूणिमा, -फात्मुनी प्रूणिमा सनौर आपाढी प्रथिमा को चार महिने मे लपेष्टृष्‌ पापोकौी सालोचना करना > % ॥ + 1 « { ।४ (५) सांवत्सरिक--प्रत्येक वर्ष भाद्रपद शुवल्म पंचमी--- सयत्सरी के दिन वं भर के पापो कौ आलोचना करना 1 प्रहन--प्रतिदिन उभयकाल प्रतित्रमण करने स दैवसिक सर राश्रिक _अतिचारो वी _युद्धि प्रोतदिन हो जाती है फिर ये पाक्षिक भादि अतिक्रमण क्यो दिए जाते हैं ?




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