प्रमुख वैदिक यज्ञों के विधिविधान में याज्ञवल्क्य के योगदान का समालोचनात्मक अध्ययन | Pramukh Vaidik Yagyo Ke Vidhividhan Me Yagyavalk Ke Yogdan Ka Samalochanatamak Adhayan

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Pramukh Vaidik Yagyo Ke Vidhividhan Me Yagyavalk Ke Yogdan Ka Samalochanatamak Adhayan by आशाराम - Asharam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अदा सजुर्वद के प्रव्तेक शस्मायन उस समय शभास क्षेत्र में रहते थे 1 चहीं पर उन्होंने याजचल्नय को यजुबंद पढ़ाया । एक बार सुमेस पर्वत पर ऋषियों की सभा हृ! पहले से ही यह संकेत किया गया था कि जो भी सभासद सात किन के भन्त्गत सभाम उपस्थिते न दोग उमे कहाइत्या का दोष लगेगा | अशम्पायन भी उस सभा में बुलाएं गण थे । दे अपने पिता का श्राद्ध-कर्म सम्पन्न करके शौध्ठता से चद जानें के लिए बाहुर निकल ही रहे थे कि उनका पैर बहम के सोए हुए पुत्र पर पड़े गया आर वह सर गया 1 बालक के अर्कस्मिक निधन के कारण नालहस्या तथा समय पर यथा में न पहुंचने के कारप्य वरलिक ब्रह्माइत्मर ये दो पात्तक वैशम्पायन को लम्‌; कमो के निदशानुसार वेशम्प्यननेत्रहामहश्यानोभकं प्रत्यश्चित किया ्रह्या० पर ३३३४-३) घर आक्र सव शिभ्यो को एकत करे वैशम्पायन मे उने अपनी ब्रह्महष्या एवं बालहत्या क निवारणार्थं प्रयस्विल करने का आदेश दिथा । याज्ञवल्क्य ने उनसे कहा- आप चिन्तास कर, शरनं प्रस्य सामथ्यं वाभि शिष्यों से ये प्रायश्चित चरण क्या होंगे, मै अकेन ह़ः सज कर दुगा ।' इस पर्‌ बेंशस्पायन ने कुछ होकर कहा- 'इस तरह अपमान करने चानि शिष्य से मेरा कोई प्रयोजन नहीं, मुझसे जो भी अध्ययन किया है, उसे स्वाग टो ।' चहु मनते ही या्चवस्क्म ने उत्तर दिया- “मैंने इन शस्यो क अपमान करने के लिए नहीं भपितु अप में भक्ति-भाव के कारण ऐसा कह दिया फिरभी जदि भाषने मेरे कथने का अभिप्राय अन्यधा म्रेहुल किया है तो मुझे शी आपके द्वारा प्राप्त वेद-जाल की भावश्यकता नहीं ।' ऐसा कहकर पहुले किये गये ऋषग्वेद-त्याग की लरह ही गुरु वेशम्पामत के द्वारा पढ़ाये गये यजुबेंद का थी गजनपान पद्धति से स्याय कर यहाँ से निकल पढ़ें थी स्कन्दपुराण के अनुसार शाकल्य से कलह होने पर माज्वल्क्य ने सुर्य की उपासना की और उनसे चारों वेदों का अध्ययन किया । उस घटना कर संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार है- 'याजवस्क्य को उपासना से प्रसन्न होकर सूयें में मनुष्य रूप में प्रकट होकर उनसे वर मांगने के लिए कहा । तस्कास ही वाज्ञचल्क्य नें निवेदन शिया- यद्वि आप सुझे वर देते हैं तो अपना शिष्य बसाइसे और बेदपाठ की शिक्षा दीजिए | (सकल पुर ना० चवं २०७८१०१) सुवं ने याज्ञवल्क्य से कहां- “मुझे समस्त लाकों को प्रकाशित करने के लिए मेरु की प्रद्षिणा कदनी पड़ती है मै तुम्हें बेद कते पठा शकता हूं ? अच्छा, जब तुम चाहते हो हो ती अत्यन्त लघु रूप में मेरे ५




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