चोर सुलतान | Chor Sultan

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Chor Sultan by कृष्णकुमार देवशर्मा - Krishnkumar Devsharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चोर सुल्तान । श् स्रौदागर था । कोई मेरा पीछा तो नहीं कर रहा है इस के ऊपर छक्ष्य कर में चड़ी सावधानी खे चढ़ा जा रहा था । में बहुत दूर चढ़ कर स्यॉदागर साहब के मकान के दरवाजे पर पहुंचा, दरवाजे के पहरे वाले ने मुझ से पूछा, * आपको इस जगद क्या दर कार हू [”. मे नें कहा, “ तुम्हारे मालिक खे 'मिढने आया हूं, एक चुत ही जरूरी काम है। ”” रन ही सादागर साहब से मुछाकात हुई; कितनी दी देर न्नक मेरी उनसे खाद दोता रददी । जब में ने उनसे बिदाली तब समय प्राय: बारह बजे का था, सूय्यं उस समय प्रायः मांथ के ऊपर थे, घूप इतनी तेज थी कि मुझे चलने में बडा कष्ट होने छगा । में जिख रास्ते खे आया था उस से न जाकर दूखरे रास्ते खे छौटने छगा 1 शायद कोई गोयन्दा मेरे पीछे न छगा हो इस लिये बार बार फिरकर देखने छगा । कष्टाण्टिनोप्लि के समान इस जगह भी गोयन्दाओं का बडा उत्पात हे, उन छोगों की तेज निगाह से निकछठजाना बड़ा कॉठेन कामद । इसजगदक सुलतान 1जेस तरह के निदय हु, सूबेदार स्राव उनकी अपेक्षा अधिक हृदय दीन दें। यदि कोई मनुष्य दिखी कारण खे एक बार उनके दाथ में आजावे फिर रक्षा नहीं दोसकती । यदि कोई गोचयन्दा मेरा पीछा कर रहा हो, दसी डर से मेने अपना रास्ता छोड़ पास की एक मखाजेद में प्रवेश किया एवम्‌ दरवाजे पर जूते खोछ मख जिद के भीतर वाछे उपासकों के बीच में जा बेठा; सुखलमान उख खमय घोटूओं को नवाये हुए अट्ठा हो अकबर कहरदे थे, में भी उसी तरदद बेठकर उपाखना करने ढगा किन्तु मेरी निगाद, रास्ते के तरफ थी कोइ मेरी तछाश मे मखाजद में आता हूं वा नहीं, इसी लिये देखे छगा । किन्ठ मेरे मस्जिद में जानें के उपरान्त किसी को भी मखजिद मे आंत नहीं देखा; तो भी मेरे मनका खसन्द्द दूर नहीं हुआ, मेरे मन में ऐसा रुपाक होने छगा कि दाौघ्रही किसी भयानक विपत्त में पडुंगा । मेरे सन में ऐसी आशंका क्यों उदय हुई 1 नदी समझ सका, किन्तु बहुत दिन खे देखता आया हूं कि जब . मरे मन में ऐसा सन्देद हुआ हें तब ही में भयानक विपत्त में पडा हूँ, पक दो बार तो प्राण जाने की नोवत आजुकी द। जो हो, डाश्चिन्ता मे और समय न मैँवा में मसजिद के बाहर हुआ । मखजिद के.पास . पक काना फकीर माख मांग रदा था उस ने मेरे पास भा अल्ढा का




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